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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra व्याक्या प्रचतिः ॥१३०२ || www.kobatirth.org Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir माणसे संजू हे देवे उबवज्जति, ते णं तस्थ दिव्बाई भोग भोगाई भुंजमाणे विहरह विहरिता ताओ देवलोगाओ आवरणं भवक्चएणं ठिक्लएणं अनंतरं वयं चहता पढमे सन्निगन्ने जीवे पञ्चायाति, १ सूक्ष्मवदिकलेवररूप अने २ बादरबौदिकलेवररूप. [जेमां वालुकाकणना सूक्ष्मनोंदि— सूक्ष्म आकारवाळा कलेवरो-असंख्यात खंडो कल्पेला छे ते सूक्ष्मत्रोंदिकलेवररूप उद्धार कहवाय छे, अने जेमां बादरबोंदि- बादर आकारवाळा कलेवरो-वालुकाकणो छे ते बादरबोंदिकलेवररूप उद्धार कहेवाय छे. ] तेमां सूक्ष्म बोंदिकलेवररूप उद्धार छे ते स्थापी राखवा योग्य छे. [ अर्थात् निरुपयोगी होवाथी तेना विश्वारनी आवश्यकता नथी.] तेमां जे नादबोंदिकलेबररूप उद्धार हे तेमांथी सो सो बर्षे एक एक वालुकाना कणनो अपहार करीए अने जेटला काळे गंगाना समुदायरूप ते कोठो क्षीण खाली धाय, नीरज-वालुकारहित थाय, निर्लेप थाय, अने निष्ठित समाप्त थाय त्यारे सरप्रमाण काल कहेवाय छे एवा प्रकारना त्रणलाख सरप्रमाण काळवडे एक महाकल्प थाय छे, चोराशीलाख महा कल्पे एक महामानस थाय छे. अनन्त संयूथ अनन्तजीवना समुदायरूप निकायथी जीव व्यवी संयूथ देवभवने विषे उपरना मानससरप्रमाण आयुषवडे उत्पन्न थाय छे १, अने ते त्यां दीव्य अने भोग्य एवा भोगोने भोगवतो विहरे छे. हवे ते देवलोकथी आयुषनो क्षय थवाथी, भवना क्षयथी अने स्थितिना क्षयथी तुरतज व्यवीने प्रथम संज्ञी गर्भज पंचेन्द्रिय मनुष्यपणे उत्पन्न थाय छे १. ते णं तओहिंतो अनंतरं उच्चहित्ता मज्झिल्ले माणसे संजूहे देवे उबवजह से णं तत्थ दिव्वाई भोग भोगाई जाब विहरिता ताओ देवलोपाओ आउ०३ जाव महत्ता दोघे सन्निगन्मे जीवे पचायाति से णं तओहिंतो अनंतरं उच्चहिता द्विल्ले माणसे संजूहे देवे उबवजह से णं तत्थ दिब्वाई जाव चहत्ता तथे सन्निगन्भे जीवे पञ्चायति, For Private And Personal १५ उद्देचा १ ॥१३०२ ॥
SR No.020110
Book TitleBhagvati Sutram Part 05
Original Sutra AuthorSudharmaswami
Author
PublisherHiralal Hansraj
Publication Year1940
Total Pages524
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size14 MB
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