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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kalashsagarsuri Gyanmandir उद्देशक ७. व्याख्या १२शतके प्रज्ञप्तिः तेणं कालेणं २ जाव एवं वयासी-केमहालए णं भंते ! लोए पन्नत्ते ?, गोयमा! महतिमहालए लोए पन्नत्ते, | उद्देशः७ ॥१०८९॥ पुरच्छिमेणं असंखेजाओ जोयणकोडाकोडीओदाहिणेणं असंखिजाओ एवं चेव एवं पञ्चच्छिमेणवि एवं उत्तरेणवि 3॥१०८९॥ Pएवं उ९पि अहे असंखेज्जाओ जोयणकोडाकोडीओ आयामविश्वभेण ।। [प्र०] ते काले-ते समये यावद्-(भगवान गौतम) आ प्रमाणे बोल्या के-हे भगवन् ! लोक केटलो मोटो कह्यो के ? [उ०] | हे गौतम ! लोक अत्यन्त मोटो कह्यो छे ते पूर्व दिशाए असंख्य कोटाकोटी योजन छ, दक्षिण दिशाए ए प्रमाणे असंख्याता कोटाकोटी योजन छे, ए प्रमाणे पश्चिम दिशाए अने उत्तर दिशाए छे. तथा एज प्रमाणे अर्ध्व-उपर अने नीचे पण असंख्य कोटाकोटि योजन आयाम-लंबाइ अने विष्कंभ-विस्तारथी छे. एयंसिणं भंते ! एमहालगंसि लोगंसि अस्थि केइ परमाणुपोग्गलमेत्तेवि पएसे जस्थ णं अयं जीवे न जाए वा न मए वावि, गोयमा! नो इण? समढे, से केणतुणं भंते! एवं वुच्चइ एयंसि णं एमहालगंसि लोगंसि नत्थि केइ परमाणुपोग्गलमत्तेवि पएसे जत्थ णं अयं जीवे ण जाएवा न मए वावि?, गोयमा ! से जहानामए-केह पुरिसे | अयासयस्स एगं महं अयावयं करेजा, से णं तत्थ जहन्नेणं एक्को वा दो वा तिन्नि वा उक्कीसेणं अयासहस्सं पक्खिवेजा ताओ णं तत्थ पउरगोयराओ पउरपाणियाओ जहन्नेणं एगाहं वा बियाहं वा तियाहं उक्कोसेणं HEHAARAA For Private And Personal
SR No.020110
Book TitleBhagvati Sutram Part 05
Original Sutra AuthorSudharmaswami
Author
PublisherHiralal Hansraj
Publication Year1940
Total Pages524
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size14 MB
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