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________________ Shri Mahavir Jain Adhoff Kendra garsuri Gyanmandir C व्याख्याप्रज्ञप्तिः ॥१०८८॥ १२वतके उद्देशः ६, १०८८॥ CACANCIESAKACCI* www.kobatirth.org Acharya Shri करवावडे शुद्ध तथा अढार प्रकारना व्यंजन-शाका दिथी युक्त भोजन कर्या बाद महाबल उद्देशकमां वासगृहनुं वर्णन कयु छ तेवा प्रकारना शयनोपचार युक्त यावत्-तेवा प्रकारनी उत्तम शृंगारना गृहरूप सुंदर वेषवाळी, यावत्-कलित-कलायुक्त, अनुरक्त, अत्यन्त रागयुक्त, अने मनने अनुकूल एवी स्त्री साथे इष्ट शब्द, स्पर्श यावत्-पांच प्रकारना मनुष्य संबंधी कामभोगोने भोगवतो विहरे छे, हे गौतम ! हवे ते पुरुष वेदोपशमनना-विकार शांतिना-समये केवा प्रकारना सुखने भोगवे ? हे आयुष्मन् श्रमण ! ते पुरुष उदार सुखने अनुभवे. हे गौतम! ते पुरुषना कामभोग करतां वानव्यंतर देवोने अनंतगुण विशिष्टतर कामभोगो होय छे. वानव्यंतर देवोना कामभोगोथी असुरेन्द्र सिवायना भवनवासी देवोने अनन्तगुण विशिष्टतर कामभोगो होय छे, असुरेन्द्र सिवाय भवनवासी देवोना कामभोगो करतां असुरकुमार देवोना कामभोगो जनंतगुण विशिष्टतर होय छे, असुरकुमार देवोना कामभोगो करतां अनंतगुण विशिष्टतर कामभोगो ज्योतिषिक देवरूप ग्रहगण, नक्षत्र अने ताराओने होय छे. ज्योतिषिक देवरूप ग्रहगण, नक्षत्र अने ताराओना कामभोगो करतां अनंतगुण विशिष्टतर कामभोगो ज्योतिषिकना इन्द्र अने ज्योतिषिक देवोना राजा चन्द्र तथा सूर्यने होय छे. हे गौतम ! ज्योतिष्कना इन्द्र, अने ज्योतिष्कना राजा चंद्र अने सूर्य आवा प्रकारना कामभोगोने अनुभवता विहरे छे. 'हे भगवन् ! ते एमज छे, हे भगवन् ! ते एमज छे' एम कही भगवान गौतम श्रमण भगवंत महावीरने (बांदी अने नमी) यावद् विहरे छे. ॥ ४५६॥ भगवत् सुधर्मस्वामीप्रणीत श्रीमद् भगवतीमत्रना १२ मा शतकमां छट्ठा उद्देशानो मूलार्थ संपूर्ण थयो. alendaCREACHERS* more For Private And Personal
SR No.020110
Book TitleBhagvati Sutram Part 05
Original Sutra AuthorSudharmaswami
Author
PublisherHiralal Hansraj
Publication Year1940
Total Pages524
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size14 MB
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