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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra व्याकयाप्रज्ञप्तिः ॥। १२४३॥ 56156 www.kobatirth.org Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir अंतं काहिति । एस भंते ! साललट्ठिया उपहाभिया तहाभिषा दवग्गिजालाभिहया कालमासे कालं किया जाव कहिं उबवज्जिहिति ?, गोयमा ! इहेब जंबुद्दीवे २ भारहे वासे विझगिरिपायमूले महेसरीए नगरीए सामलिरुखत्ताए पञ्चायाहिति से णं तत्थ अचियवंदियपूय जाव लाउल्लोइयमहिए ग्रावि भविस्सह, से णं भंते! तओहिंतो अनंतरं उच्चट्टित्ता सेसं जहा सालरुक्खस्स जाव अंतं काहिति । एस णं भंते ! उंबरलट्ठिया उपहाभिहया ३ कालमासे कालं किवा जाव कहिं उववज्जिहिति ?, गोयमा ! इहेब जंबुतीचे २ भारहे वासे पाडलिपुत्ते नार्म नगरे पाडलिरुक्खत्ताए पश्चायाहिति से णं तस्थ अच्चियवंदिय जाव भविस्सति, से णं भंते ! अनंतरं उच्चतित्ता सेसं तं चैव जाव अंतं काहिति (सूत्रं ५२८) ।। [प्र०] हे भगवन् ! [ सूर्यनी] गरमीथी पीडित थयेलो, वृषाथी हणायेलो अने दावानळनी जाळथी मळेलो आ शालवृक्ष कालमासे - मरणसमये काल करी क्यां जशे अने क्यों उत्पन्न थशे ? [30] हे गौतम! आज राजगृह नगरमां फरीथी उत्पन्न थशे, अने ते त्यां अर्चित, वंदित, पूजित, सत्कारित, सम्मानित अने दिव्य - प्रधानभूत थशे. तथा सत्यरूप - सत्यावपात - जेनी सेवा सफल थाय एवो, [पूर्वभवसंबन्धी देवोए] जेतुं प्रतिहारपणुं सांनिध्य कई छे एवो, तथा जेनी पीठ - चोतरो लींपैलो अने धोळेलो एवो ते (पूजनीय ) थशे. [प्र] हे भगवन् ! [ ते शालवृक्ष ] त्यांथी मरण पामी क्यां जशे अने क्या उत्पन्न थशे ? [अ०] हे गौतम ! महाविदेह क्षेत्रमां सिद्ध थशे. तथा यावत् - सर्व दुःखोनो अन्त करशे. [प्र०] हे भगवन् ! सूर्यनी गरमीथी हणायेल, तृषाथी पीडित थयेल तथा दावानळनी जाळथी बळेली आ शालयष्टिका शालवृक्षनी न्हानी शाखाओ कालमासे मरण समये काल For Private And Personal १४ भा उद्देशा ।। १२४३ ।।
SR No.020110
Book TitleBhagvati Sutram Part 05
Original Sutra AuthorSudharmaswami
Author
PublisherHiralal Hansraj
Publication Year1940
Total Pages524
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size14 MB
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