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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra व्याख्याप्रशसि ॥१२४५॥ www.kobatirth.org Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir केटलं अचाधावडे अंतर कधुं छे-एम प्रश्न करवो. [अ०] हे गौतम! सातसो ने नेवु योजन अवाधावडे अंतर कछु ले. [प्र० ] हे भगवन् ! ज्योतिषिक अने सौधर्म-ईशान कल्पनु केटलुं अन्तर कधुं छे ? [अ०] हे गौतम! असंख्याता योजन यावत्-अन्तर कहु छे [प्र०] हे भगवन् ! सौधर्म ईशान अने सनत्कुमार- माहेन्द्रनुं केंटलुं अन्तर कयु के ? [२] पूर्वप्रमाणे जाण. [प्र० ] हे भगवान् ! सनत्कुमार-माहेन्द्र अने ब्रह्मलोक कल्पनुं केटले अन्तर होय छे ? [] पूर्व प्रमाणे जाणं. [ प्र० ] हे भगवन् ! ब्रह्मलोक अने लांतककल्प बच्चे केटले अन्तर छे ? [उ० ] पूर्ववत जाणवु [प्र०] हे भगवन् ! लांतक अने महाशुक कल्पनुं कैटलुं अंतर होय छे ? [३०] पूर्ववत् जाणं. ए प्रमाणे महाशुक्र कल्प अने सहस्रारनुं अन्दर जाणवुं, तथा सहस्रार अने आनत - प्राणतकल्प अने आरणअच्युतकल्पनुं, आरण-अच्युतकल्प अने ग्रैवेयकनुं, अने ग्रैवेयक अने अनुत्तरविमाननुं अन्तर पूर्ववत् जाणवुं [प्र० ] हे भगवन् ! अनुत्तरविमान अने ईषत्प्राग्भारा पृथिवीनुं केटलं अन्तर होय के ? [3] हे गौतम! बार योजननुं अबाधावडे अन्तर कर्तुं छे. [अ०] हे भगवन् ! ईषत्प्राग्भारा पृथिवी अने अलोकनुं कैटलुं अबाधावडे अंतर कधुं छे ? [अ०] हे गौतम! कड़क न्यून एक योजन अबाधाए अन्तर है. ॥ ५२७ ॥ एस णं भंते! सालरुखे उण्हाभिहए तण्हाभिहर दवग्गिजालाभिहए कालमासे कालं किच्चा कहिं गच्छ हित कर्हि उववज्जिहिति?, गोयमा । इहेव रायगिहे नगरे सालरुवस्वत्ताए पञ्चायाहिनि, से णं तत्थ अचियवंदियसकारियसम्माणिए दिव्वे सच सच्चोवाए सन्निहियपाडिहेरे लाउल्लोइयमहिए यावि भविस्सह, से णं भंते !. तओहिंतो अनंतरं त्वहित्ता कहिं गमिहिति कर्हि उववज्जिहिति ?, गोयमा! महाविदेहे वासे सिज्झिहिति जाव For Private And Personal १४ शतके उद्देशा ।। १२४५॥
SR No.020110
Book TitleBhagvati Sutram Part 05
Original Sutra AuthorSudharmaswami
Author
PublisherHiralal Hansraj
Publication Year1940
Total Pages524
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size14 MB
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