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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kalashsagarsuri Gyanmandi लोकरी क्या जशे अने क्या उत्पन्न थशे? [उ.] हे गौतम ! आज जंवृद्वीपना भारतवर्षमा विन्ध्याचलनी तळेटीमां माहेश्वरी व्याख्या नगरीमा ते शाल्मली वृक्षरूपे उत्पन्न थशे, अने ते त्यां अर्चित, बंदित अने पूजित थशे, तथा यावत्-तेनो चोतरो लीपेलो, धोळेलो प्रति ॥१२४७॥ का अने पूजित थशे. [प्र.] हे भगवन् ! ते त्यांथी मरण पामी क्या जशे अने क्या उत्पन्न थशे ?-इत्यादि बधु शालवृक्षनी पेठे 8१२४ जाणवू, यावत्-ते सर्व दुःखोनो अन्त करशे. [प्र.] हे भगवन् ! [सूर्यनी] गरमीथी हणायेल, तृपाथी पीडायेल अने दवामिजाळथी बळी गयेल आ उंबरवक्षनी शाखा मरणसमये काल करी क्या जशे, क्या उत्पन्न थशे ? [उ०] हे गौतम ! ते आज जंबूद्वीपना भारतवर्षमा पाटलिपुत्र नामना नगरमां पाटलिवृक्षपणे उत्पन्न थशे. अने त्यां ते अर्चित, बंदित अने यावत्-पूजनीय थशे. [प्र.] ते त्यांथी मरण पामी क्या जशे, क्या उत्पन्न थशे ? [उ.] ए बधु पूर्वनी पेठे जाणवु, यावत्-सर्व दु:खोनो अंत करशे.॥५२८॥ तेणं कालेण तेणं समएणं अम्मडस्स परिव्वायगस्स सत्त अंतेवासीसया गिम्हकालसमयंसि एवं जहा उववाइए जाव आराहगा (सूत्रं ५२९) ।। ते काले, ते समये अंबड परिमाजकना सातसो शिष्यो ग्रीष्म कालने समयने विषे विहार करता-इत्यादि मधु औषपातिक सूत्रमा कया प्रमाणे अहिं कहे, यावत्-'तेओ आराधक धया-त्यां मुधी जाणवू. ।। ५६९॥ बहुजणे णं भंते ! अन्नमनस्स एवमाइवह एवं-स्खलु अम्मडे परिवायए कंपिल्लपुरे नगरे घरसए एवं जहा उववाइए अम्मडस्स बत्तब्बया जाव दढप्पाण्णो अंतं काहिति (सूत्रं ५३०)। हे भगवन् ! घणा माणसो परस्पर आ प्रमाणे कहे छे के, 'अंबड परिव्राजक कांपिल्यपुर नगरमा सो घेर जमे छ'-त्यादि । For Private And Personal
SR No.020110
Book TitleBhagvati Sutram Part 05
Original Sutra AuthorSudharmaswami
Author
PublisherHiralal Hansraj
Publication Year1940
Total Pages524
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size14 MB
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