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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (ता पडिनियत्तमाणस्स अंतरा मंथे वट्टमाणस्स तेयाकम्माणं बंधे समुप्पज्जा, किं कारणं?, ताहे से पएसा एगत्ती-II व्याख्या- 18|गया भवंतित्ति, सेत्तं पडुप्पन्नप्पयोगपच्चइए, सेत्तं सरीरबंधे ३॥ से किं तं सरीरप्पयोगबंधे?, सरीरप्पयोगबंधे X८ शतके प्रज्ञप्तिः पंचविहे पन्नत्ते, तंजहा-ओरालियसरीरप्पओगबंधे वेउब्वियसरीरप्पओगबंधे आहारगसरीरप्पओगबंधे तेयास उद्देशः ९ ॥६९८॥ रीरप्पयोगबंधे कम्मासरीरप्पयोगबंधे । ओरालियसरीरप्पयोगबंधे णं भंते ! कतिविहे पण्णत्ते?, गोयमा! पंच ॥६९८॥ विहे पन्नत्ते, तंजहा-एगिदियओरालियसरीरप्पयोगबंधे बेंदियओ० जाव पंचिंदियओरालियसरीरप्पयोगबंधे। प्र०] सर्वसहनन बन्ध केवा प्रकारनो कयो छे ? [उ०] हे गौतम! दूध अने पाणी इत्यादिनो सर्वसंहनन बन्ध कह्यो छे. ए | प्रमाणे सर्वसंहनन बन्ध करो. ए रीते आलीनबंध पण कयो. [प्र.] शरीरबन्ध केटला प्रकारनो कयो छे, [उ.] शरीरबन्ध वे प्रकारनो कयो छे, ते आ प्रमाणे-१ पूर्वप्रयोगप्रत्ययिक अने २ प्रत्युत्पन्न प्रयोगप्रत्ययिक. [प्र०] हे भगवन् ! पूर्वप्रयोगप्रत्ययिक शरीरबन्ध केवा प्रकारनो छे? [उ०] ते ते स्थळे ते ते कारणोने लीधे समुद्घात करता नैरयिको अने संसारावस्थावळा सर्व जीवप्रदेशोनो जे बन्ध थाय छे ते पूर्वप्रयोगप्रत्ययिक बन्ध छ. ए प्रमाणे पूर्वप्रयोगप्रत्ययिक बन्ध कयो. [प्र.] प्रत्युत्पन्न प्रयोगप्रत्ययिक | बन्ध केवा प्रकारनो कसो छ ? [उ.] केवलिसमुद्घातवडे समुद्घात करता अने ते समुद्घातथी पाछा फरता, बच्चे मंथानमां वर्तता | केवलज्ञानी अनगारना तैजस अने कार्मण शरीरनो जे बन्ध थाय ते प्रत्युत्पन्नप्रयोगप्रत्ययिक बन्ध कहेवाय के. तैजस अने कार्मण है शरीरनो बन्ध शाथी थाय छे ? ते वखते ते आत्मप्रदेशो संघातने पामे छे. (अने ते प्रदेशोने अनुसरीने तैजस अने कार्मणनो पण नबन्ध पण थाय छे.) ए प्रमाणे प्रत्युत्पन्न प्रयोगप्रत्ययिक बन्ध कह्यो, ए प्रमाणे शरीरबन्ध को. [प्र.] शरीरप्रयोग बन्ध केवा प्रकारे For Private and Personal Use Only
SR No.020108
Book TitleBhagvati Sutram Part 03
Original Sutra AuthorSudharmaswami
Author
PublisherHiralal Hansraj
Publication Year1938
Total Pages212
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size12 MB
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