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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir व्याख्याप्रज्ञप्तिः ॥६९७॥ ८ शतके उद्देशः९ ॥६९७॥ | पुष्करिणी, दीपिका, गुंजालिका, सरोवरो, सरोवरनी श्रेणि, मोटा सरोवरनी पंक्ति, बिलनी श्रेणि, देवकुल, सभा, परब, स्तूप, खाइओ. परिघो, किल्लाओ, कांगराओ. चरिको, द्वार, गोपुर, तोरण, प्रासाद, घर, शरण, लेण (गृह विशेष) हाटो, शृंगाटकाकारमार्ग, | त्रिकमार्ग, चतुष्कमार्ग, चत्वरमार्ग, चतुर्मुखमार्ग, अने राजमार्गादिनो चुनाद्वारा, कचराद्वारा अने श्लेषना (वचलेपना) समुच्चयवडे जे बंध थाय छे ते समुच्चयबन्ध. ते जघन्यथी अन्तर्मुहूर्त, अने उत्कृष्टथी संख्येयकाल सुधी रहे छे. ए प्रमाणे समुच्चयबन्ध कह्यो. [प्र०] संहननबन्ध केवा प्रकारनो कह्यो छ ? [उ०] संहननबन्ध वे प्रकारनो कयो हे; ते आ प्रमाणे-देशसंहननबन्ध अने सर्वसंहननबन्ध, [प्र०] हे भगवन् ! देशसंहनन बन्ध केवा प्रकारनो के ? [उ०] हे गौतम! गाडा, रथ, यान (नाना गाडा) युग्यवाहन गिल्लि (हाथीनी अंबाडी), थिल्लि (पलाण); शिविका, अने स्यन्दमानी (पुरुषप्रमाण वाहनविशेष), तेमज लोढी. लोढाना कडाया, कडछा. आसन, शयन, स्तंभो, भांड (माटीनां वासण) पात्र अने नाना प्रकारना उपकरण-इत्यादि पदार्थोनो जे संबन्ध थाय छे ते देश संहननबन्ध छे. ते जघन्यथी अन्तर्मुहूर्त, अने उत्कृष्टथी संख्येय काल सुधी रहे है. ए प्रमाणे देशसंहनन बन्ध कयो. से किं तं सव्वसाहणणाबंधे !, सव्वसाहणणाबंधे से णं खीरोदगमाईणं, सेत्तं सव्वसाहणणाबंधे, सेत्तं साहणणाबंधे, सेत्तं अल्लियावणबंधे॥से कितं सरीरबंधे?, मरीरबंधे दुविहे पण्णत्ते, तंजहा-पुवप्पओगपञ्चइए य | पडुप्पन्नपओगपञ्चइए य, से किं तं पुवप्पयोगपच्चइए?,पृथ्वप्पओगपञ्चइए जन्नं नेरइयाइयाणं संमारवत्थामव्वजीवाणं तत्थ २ तेसु २ कारणेसु ममोहणमाणाणं जीवप्पदेसाणं बंधे समुप्पजइ, सेत्तं पुवापयोगपञ्चइग, से किं तं पडप्पन्नप्पयोगपच्चइए?, २ जन्नं केवलनाणिस्स अणगारस्स केवलिसमुग्घाएणं समोहगस्स ताओ समुग्घायाओ CAMARCRACACARE For Private and Personal Use Only
SR No.020108
Book TitleBhagvati Sutram Part 03
Original Sutra AuthorSudharmaswami
Author
PublisherHiralal Hansraj
Publication Year1938
Total Pages212
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size12 MB
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