SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 40
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagersuri Gyarmandie हल्क र वाला ? (उ०) हे गौतम! ए अर्थ समर्थ नथी. (५०) हे भगवन् ! ए प्रमाणे शा हेतुथी कहो छो। (उ०) हे गौतम! पूर्व प्रमाणे व्याख्या| जाणवं. अर्थात् नैरयिको वे प्रकारना छे ते आ प्रमाणे:-पूर्वोपपन्नक अने पश्चादुपपन्नक, तेमा जे पूर्वोपपत्रक छे तेओ विशुद्ध वर्ण १ शतके प्रज्ञप्तिः वाळा छे अने जे पछीथी उत्पन्न थयेला तेओ अविशुद्ध वर्णवाला छे, माटे हे गौतम! पूर्व प्रमाणे कमु छे. (प्र०) हे भगवन् ! बधा 15 उमेशः२ ॥३४॥ ॥३४॥ 18नरयिको समान लेश्यावाला छे ? (उ०) हे गौतम! ते अर्थ समर्थ नथी. (प्र०) हे भगवन् ! ते ए प्रमाणे शा हेतुथी कहो छो? के,131 है।वधा नरयिको समान लेश्यावाळा नथी ? (उ०) हे गौतम! नैरयिको पूर्ववत् वे प्रकारना कह्या छे तेमां जे नैरपिको प्रथम उत्पन्न थयेला ते विशुद्धलेश्यावाळा छे अने पछी उत्पन्न यया छे ते अविशुद्ध लेश्यावाला छे. माटे हे गौतम! ते हेतुथी पूर्ववत् जाणवू. (०) हे भगवन् ! बधा नैरपिको सरखी वेदनावळा छ ? (उ०) हे गौतम! ए अर्थ समर्थ नथी. (५०) हे भगवन् ! ए प्रमाणे शा3 | हेतुथी कहो छो? (उ०) हे गौतम ! नरयिको वे प्रकारना कहा छे. ते आ प्रमाणे-संनिभूत अने असंनिभूत छे तेमा जे संझीभूत छे ते मोटी वेदनावाला छे अने जे असंझीभूत छे ते ओछी वेदनावाळा छे, माटे हे गौतम ! ते हेतुथी पूर्ववत् कयुछे. (प्र०) हे भगवन् ! बधा नैरयिको समान क्रियावाला छे(उ०) हे गौतम! ए अर्थ समर्थ नथी. (प्र०) हे भगवन् ! ए प्रमाणे शा हेतुथी कहो छो! (उ०) हे गौतम! नैरयिको त्रण प्रकारना कया छे ते आ प्रमाणे:-सम्यग्दृष्टि, मिथ्यादृष्टि अने सम्यग्मिध्यादृष्टि, तेमां जेओ | सम्यग्दृष्टि छे तेओने चार क्रिया होय छे ते आ प्रमाणेः-आरंभकी, पारिग्रहिकी, माया प्रत्यया अने अप्रत्ययाख्यान क्रिया तेमां | जेओ मिध्यादृष्टि छे, तेओने पांच क्रियाओ होय छे ते आ प्रमाणे:-आरंभिकी, पारिग्रहिकी, मायाप्रत्यया, अप्रत्याख्यान क्रिया, अने मिथ्यारष्टि प्रत्यया तथा तेमां जेओ सम्पमिथ्याष्टि छे तेओने पण पूर्व प्रमाणे पांच क्रियाओ होय छे, माटे हे गौतम ! .ACE ॐAX* For Private and Personal Use Only
SR No.020106
Book TitleBhagvati Sutram Part 01
Original Sutra AuthorSudharmaswami
Author
PublisherHiralal Hansraj
Publication Year1937
Total Pages330
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size8 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy