SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 177
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatrth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir * व्याख्या प्रज्ञप्तिः ॥१७॥ ******* आचरता तया श्रमण निग्रंथोने निर्दोष अने ग्राह खान, पान, खादिम, स्वादिम, वख, पात्र, कामळ, रजोहरण, पाटीयु, शय्या 15 | संथारो अने ओसडवेसट, ए बधुं आपी यथाप्रतिगृहीत तपकर्मवडे आत्माने भावता विहरे छे. ॥१०६ ।। २ शतके तेणं कालेणं २ पासावचिना थेरा भगवंतो जातिसंपन्ना कुलसंपन्ना बलसंपन्ना रूवसंपन्ना विणयसंपन्ना उद्देशः५ ४ाणाणसंपन्ना सणसंपन्ना चरित्तसंपन्ना लज्जासंपन्ना लाघवसंपन्ना ओयंसी तेयंसी वच्चंसी जसंसी जियकोहा | ॥१७॥ |जियमाणा जियमाया जिसलोभा जियनिदा जितिंदिया जियपरीसहा जीवियासमरणभयविप्पमुक्का जाव कुत्तियावणभूता बहुस्सुया बहुपरिवारा पंचहिं अणगारसएहिं सद्धिं संपरिवुडा अहाणुपुब्धि परमाणा गामाणुगामं दृइलमाणा सुहंसुहेणं विहरमाणा जेणेव तुंगिया नगरी जेणेव पुप्फवतीए चेइए तेणेव उवागच्छति २ अहापडिरूवं उग्गहं उगिणिहत्ताणं संजमेणं तवसा अप्पाणं भावेमाण विहरंति ॥ (सू० १०७) ॥ ते काले ते समये पार्श्वनाथ प्रभुनी परंपरावाला स्थविर भगवंतो के जेओ उत्तम जातिवाला, उत्तम कुळवाला, बळबाग, उत्तम रूपवाला, विनयवाळा, ज्ञानवाला, दर्शनयाळा, चारित्रवाळा, लज्जा-संजमवाळा, लाघव-ओछी उपधिवाळा, मनना बळवाळा, | तेजवाळा, बोलवामां निपुण, तेमज क्रोध, मान, माया, अने लोभ, मिद इंद्रिय अने परिषहोने जीतनारा तथा जीवानी इच्छा | अने मरणनो भय ए बन्नेथी रहित यावत्-त्रण जगतनी वस्तुओ मळे तेवी दुकान जेवा प्रभाववाळा बहु श्रुल, घणा परिवारवाला | एवा हता, तेओ पांचसे साधुओनी साथे परिवारवाळा अनुक्रमे चालता गामेगाम विहार करता सुखे समाधे संजम पालता जे जगोपर तुंगिया नगरी छे, जे जगोपर पुष्पवती नामर्नु चैत्य छे त्यां पधार्या अने आवी साधुने लायक एवी जग्यानी मागणी करीने || AKASA%AXSA%A4%% * For Private and Personal Use Only
SR No.020106
Book TitleBhagvati Sutram Part 01
Original Sutra AuthorSudharmaswami
Author
PublisherHiralal Hansraj
Publication Year1937
Total Pages330
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size8 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy