SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 176
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra व्याख्या प्रज्ञप्तिः ॥ १७० ॥ www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सोनुं अने रूपुं पण घणुं हतुं तेओ व्यापार वाणीज्य करी धननें बधारवामां तेमज बीजी अनेक कळाओमां तेओ कुशळ हता. बली तेओने त्यां भोजन सामग्री घणी थती हती कारण तेओने घरे अनेक माणसो भोजन करता हता. वली विविध प्रकारनां खानपानादि हतां तेओने त्यां अनेक नोकरो अने चाकरडीओ, गायो, पाडाओ, अने पेंटाओनो समूह हतो. बीजा घणा माणसोनी अपे क्षाए तेओ चढीयाता हता तेओ जीव अने अजीवना स्वरूपने सारी रीते समजता हता, वली पुन्य अने पापनो ख्याल हतो तेओ आस्रव, संवर, निर्जरा, क्रिया, अधिकरण, बंध अने मोक्ष, एटलां वानामां क्यूं ग्राह्य अग्राह्य है ए सारी पेठे जाणता हताः तेओ कोइपण कार्यमां परावलंबी न हता, तेओ निर्बंधना प्रवचनमां एवा तो चुस्त हता के समर्थ देवो, असुरो, नागो, ज्योतिष्को, यक्षो, राक्षसो, किंनरो किंपुरूषो, सुवर्णकुमारो, गंधवों अने महारोग विगेरे बीजा देवो पण तेओने निर्ग्रथना प्रवचनथी कोइ रीते चलायमान करी शकता नहीं, तेओ निर्ग्रथना प्रवचनमां शंका अने विचिकित्सा विनाना हता, तेओए शास्त्रना अने मेळव्या हता, शास्त्रना अर्थने चोकतापूर्वक ग्रह्या हता, शास्त्रना अर्थमा संदेहवाळां ठेकाणा पूछी निर्णीत कर्यां हतां, शास्त्रना अर्थाने अभिगम्या हता अने शास्त्रोना अर्थनुं रहस्य तेओए निर्णयपूर्वक जायुं हतुं तथा तेओने साधुओना प्रवचन उपर हाडोहाड प्रेम व्यापी गयो हतो, तेने लइने तेओ एम कहेता हता के "हे चिरंजीव ! आ निर्बंधतुं प्रवचन एज अर्थ अने परमार्थरूप छे अने बाकी बीजुं सर्व अनर्थरूप छे, वळी तेओनी उदारताने लीघे तेओना दरवाजानी पछवाडे रहेतो उलारीयो हंमेशां उंचोज रहेतो हतो अर्थात् तेओना दरवाजा हंमेशाना माटे खुल्ला हता, वळी ते श्रावको जेने घरे के जेना अंतःपुरमा जता तेओने प्रीति उपजावता, तथा शीलव्रत, गुणत्रत, विरमण, प्रत्याख्यान, पौषध अने उपवासोबडे चौदश, अट्टम, अमास, तथा पूनमने दिवसे परिपूर्ण पौषधने सारी रीते For Private and Personal Use Only २ शतके उद्देशः ५ 1129011
SR No.020106
Book TitleBhagvati Sutram Part 01
Original Sutra AuthorSudharmaswami
Author
PublisherHiralal Hansraj
Publication Year1937
Total Pages330
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size8 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy