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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir भगोटा १५२ - (क) प्रोटीनम् बोलियन् ( Ergotinum Bon jean )-यह एक जलीय रनाभधूसर एक्सट्रक्ट है जो ऐल कोहल से शुद्ध किया जाता है। इसका १ भाग ५ या ६ भाग अर्गट के बराबर होता है। मात्रा-21 से ४१ प्रेन । (ख) अगोटीनम् बॉम्बेलोन फ्लुइडम् ( Ergotinum Bombeion Fluidum )-यह एक धूसरामकृष्ण वर्णीय द्रव है जिसको ३० मिनिम की मात्रा में स्वस्थ सूचीवेध द्वारा प्रयुक्र किया करते हैं। (ग) अोटोनम् डेओल फ्लुइडम् (Ergotinum Denzel Fluidum )यह एक स्वच्छ किया हुआ रस क्रिया (खुलासा, रुब्ब ) है जिसको ३ से १० ग्रेन की मात्रा में देते हैं। (घ) अोटीनम् कोलमैन फ्लुइडम् | (Ergotinum Kohlman Fluidum )-यह भी श्यामाभधूसर द्रव है जो जल के साथ संयुक्र हो जाता है । मात्रा-६० से ७५ ग्रेन। (१५) टायरेमोन (Tyramine ), हाइड्रॉक्सीफेनिलीथिलामीन (P-Hydroxy. phenylethylamine )-यह अर्गट फांट में वर्तमान होता है और इसे सन्धानक्रिया विधि (Synthetically) द्वारा भी प्रस्तुत किया गया है । इसका प्रभाव एडीनेलीन (उप वृक्कसार ) के समान होना है। स्वगधोऽन्तःक्षेप द्वारा (१ ग्रेन की मात्रा में ) भी इसका प्रयोग किया जा सकता है। यह सिस्टोजन (Systogen) और युटेरामीन ( Uteramin ) नाम से भी प्रसिद्ध है। (१६) इन्युटीन ( Ernutin ) यह एक तरल है, जिसमें टायरमीन और प्रोटॉक्सीन दोनों सम्मिलित होते हैं । त्वगधोऽन्तःक्षेप रूप से (१० मिनिम की मात्रा में और प्रान्तरिक रूप से ३० से ६० बूद 'मिनिम' की मात्रा में) इसका उपयोग होता है। भर्गोटा अर्गट की फार्माकालाजी अर्थात् अर्गट के प्रभाव (अान्तरिक प्रभाव ) डॉक्टर डिक्सन ( Daixon ) एवं डॉ० डेल ( Dale) ने अर्गट स्थित मुख्य प्रभाव. कारी सत्वों की ध्यानपूर्वक परीक्षा की जो इस कच्ची औषध (Crude drug ) के प्रभाव पर यथेष्ट प्रकाश डालती है। जैसा कि द्विजिटेलिसके सम्बन्ध में कहा जाता है, इसका यह प्रभाव इसके विभिन्न सत्वों के सम्मिलित प्रभाव का परिणाम माना जा सकता है। (डिजिटेलिस के समान. अगट से भिन्न किए हए किसी भी सत्व का ऐसा विश्वस्त प्रभाव नहीं होता जैसा कि कच्ची औषधके कांट, टिंक्चर या लिक्विड एक्सट्रक्ट अर्थात् तरल सन्त्र का)। १) प्रोटॉक्सीन (Ergotoxine)वे पदार्थ जो प्रथम स्फेसीलिनिक एसिड (Spha. celinic Acid) और स्फेसीलोटॉक्सीन (Sphacelotoxin) नाम से अभिहित होते थे, उक्र ऐलकलाइड (क्षारोद ) के अशुद्ध रूप थे । डिक्सन महोदय इसका प्रभाव-स्थल प्रान्तस्थ नाडी-गंड की सेलों को मानते हैं। उनके मतानुसार यह रतवाहि. नियों को बलपूर्वक प्राकृचित करता है जिससे शरीरावयव एवं हस्तपाद में गैंग्रीन बन जाते हैं, और कुक्कुट की अरुणशिखा श्यामवर्ण में परिणत होकर पतित हो जाती है एवं यह गर्भान्वित जरायु के तन्तुनी का सबल श्राकुश्चन उत्पन करता है। शय्यागत रूप से अर्थात् रोगी पर यद्यपि इसका कोई विशेष प्रभाव नहीं होता, तो भी यही इसका एक ऐसा प्रभावकारी सत्व है जिससे वास्तव में अर्गट को अमोघ कहा जा सकता है। (२) टायरेमीन ( Tyramine.)प्राणिज पदार्थ के पचनकाल में अमिनो-एसिड द्वारा भी यह निर्मित किया जाता है। टायरोसीन For Private and Personal Use Only
SR No.020089
Book TitleAyurvediya Kosh Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamjitsinh Vaidya, Daljitsinh Viadya
PublisherVishveshvar Dayaluji Vaidyaraj
Publication Year1934
Total Pages895
LanguageSanskrit
ClassificationDictionary
File Size29 MB
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