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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अपराजिता ३८० अपराजिता पाएँगे और इसकी मात्रा २ ड्राम पर्यन्त करने से | दस्तों की संख्या बढ़ाई जा सकती है। इतने से साधारणतः ८ या दस्त श्राएँगे। (२) अपराजिताके वोजका मिश्रित चूर्णCompound Powder of Clitorea Seeds ( Pulvis Clitoreve Compositus). निर्माण-विधि-अपराजिता के बीज, सैंधव या क्रीम ऑफ़ टार्टार इनको चूर्ण कर इनमें से प्रत्येक ७ औंस लें: सोंठ या कुलंजन क्षुद्र का चूर्ण एक बाउंस इनको एक साथ भली प्रकार रगड़कर बारीक चलनी या कपड़े से चालकर बंद बोतल में सुरक्षित रक्खें। मात्रा--१॥ ड्राम से २ ड्राम तक । (३) शीत कषाय (Infusion)-( मात्रा-१ से २ श्राउंस । (४) एलकोहलिक एक्सट्रैक्ट । (५) क्वाथ । (६) पत्र एवं मूल स्वरस | (७) सूखी हुई जड़की छालका चूर्ण । मात्रा१ से ३ ड्राम | प्रतिनिधि-काला दाना व लालदाना, • जलापा तथा कॉन्वॉल्व्युलस के बीजकी यह उतम प्रतिनिधि है । भेद केवल इतना है कि यह अधिक अग्राह्य एवं चरपरी होती है। अपराजिता के प्रभाव तथा प्रयोग कीमत से-दोनों गिरिकर्णी (श्वे. तापराजिता तथा नीलापराजिता) तित, पित्त के उपद्रव को प्रशमन करने वाली, चतुष्य, विषदोषनाशक तथा त्रिदोषशामक होती हैं। गिरि'कर्णी (अपराजिता ) शीतल, तिक पित्तोपद्रवनाशक, विष तथा नेत्र के विकारों को शमन करने वाली और कुष्ठरोग को नष्ट करने वाली है। । (धन्वन्तरीय निघंटु) गिरिकर्णी ( अपराजिता) हिम, तिक, पित्तोपद्रव नाशक, चक्षुष्य, विषदोषशामक और त्रिदोष को शमन करने वाली है। नीलाद्रिकर्णी (नीलापराजिता) शीतल,तिक है, रक्तातिसार, ज्वर तथा दाह को नष्ट करने वाली तथा विष, वमन, उन्माद, भ्रमरोग, श्वास और अतिकास रोग को हरण करनेवाली है। राज०। कटु, तिक, कफ वातनाशक्क, सूजन को दर करने वाली, खाँसी को नष्ट करने वाली और कण्ठ्य अर्थात् कण्ठ को शुद्ध करने वाली है। राज। अपराजिता कटु, मेध्य शीतल, कण्ठ्य, दृष्टि को प्रसन्नताकारक तथा कुष्ट, शूल, त्रिदोष, प्राम, शोथ, व्रण और विष को नष्ट करनेवाली है तथा कसेली, पाकमें कटुक ( चरपरी ) व तिक है तथा स्मृति और बुद्धिदायक है। भा० । अपराजिता के प्रयोग यह पृश्नि (चितकबरे, कौड़िया साँप ), वज नामक साँप और बिच्छु के विष की नाशक है। अथर्व० । सू०४।१५। का० १० । चरक--दर्वीकर सर्प के काटने पर सिन्धुवार (श्वेत निगु एडी) वृक्ष की जड़ की छाल और श्वेत अपराजिता की जड़ की छाल इनको जल के साथ पीस कर पिलाएँ। (चि २५ श्र०)। चक्रदत्त-(१) श्वतापराजिता की जड़की छाल के रस को तण्डुलोदक के साथ गोघृत के योग से पान कराएँ। इससे भूतोन्माद शमन होगा । ( उन्माद चि०) (२) सफेद कोयल की जड़ को पीसकर गो घृत मिला गलगण्ड रोगी को पिलाएँ। (गलगण्ड चि०)। शार्ङ्गधर-परिणाम शूल में चीनी, मधु और गोघृत के साथ विष्णुक्रांता की जड़ का कल्क ७ दिन तक सेवन करने से परिणामशूल नष्ट होता है । (२ खं०५०)। वंगसेन-शोथरोग में श्वेत वा नील अपराजिता की जड़ की छाल को उष्ण जल में पीसकर पान करने से सूजन जाती रहती है। (जी. स० ११ वृ०)। __ हारीत-वल्मीक श्लोपद रोगमें गिरिकर्णिका अर्थात् अपराजिता की जड़ की छाल को पीसकर लेप करें। (चि०३३ अ.) For Private and Personal Use Only
SR No.020089
Book TitleAyurvediya Kosh Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamjitsinh Vaidya, Daljitsinh Viadya
PublisherVishveshvar Dayaluji Vaidyaraj
Publication Year1934
Total Pages895
LanguageSanskrit
ClassificationDictionary
File Size29 MB
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