SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 397
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir www.kobatirth.org अश्ववृद्धि ३५५ अण्डवेष्ट का निर्माण करता है । परन्तु जातज अंत्रवृद्धि में अण्डधारकरजु वाला उदरककला का भाग नष्ट नहीं होता | अतएव उदरक कला तथा अण्डवेष्ट के बीच रास्ता रह जाता है जिससे होकर उदर से वसा वा भून उतर पाती ३-वृद्धावस्था में होने वाली। (३) अंत्रवृद्धि-बात का फरक-उ० । फरक मिआई, फक मिअवी-अ० । इन्टेस्टाह. नल हर्निया Intestinal hernia-इं० । यह वही प्रकार है जिसका वर्णन हो रहा है। अायुर्वेद में केवल एक इसी प्रकार की अन्त्रवृद्धि का वर्णन किया गया है। देखो-वृद्धिः। (४) सक्थि वृद्धि (ऊर्वन्त्र वृद्धि) रान का फरक-उ० । फरक फरज़ी-झ० । फेमोरल हर्निया Femoral hernia-इं०। - इस प्रकार की वृद्धि में वंक्षण के बाहर (उरु या जानु के ऊपरी भाग) की अोर उरु को नाली ( Femoral Canal) में वसा का अंत्र बाहर को उभर आती है। इस प्रकार का प्रत्न प्रायः स्त्रियों को हुआ करता है। जिस स्त्री के कई बच्चे हो गए हों उसको प्रायः यह विकार होता कोषयुक्त वृद्धि-कीसह दार फत्क-उ० ।। फरक युकस्स-अ० । इन्सिस्टेड हर्निया ( Incy. sted Hernia )-01 - यह भी एक प्रकार की जातज वृद्धि ही है जिसमें अण्डधारकरज वाच्छादक उदरककला का भाग एक पदें के कारण थैली बन जाता है। 'यह थैली साधारणतः अण्डवेष्ट के पीछे रहती है इस प्रकार की वृद्धि का जातज वृद्धि से निदान करना कठिन होता है। क्योंकि दोनों के लक्षण समान होते हैं। स्थानानुसार इसके कतिपय अन्य भेद होते हैं जिनमें से प्रत्येक का यहाँ क्रमशः वर्णन किया जाता है, यथा. उदरीय वृद्धि-पेट का फरक-उ० । फरक बरनी,फक मराकुल्वर नी-अ०। ऐब्डोमिनल : हर्निया A bdominal hernia-ई० । .. इस प्रकार की वृद्धि में नाभि के गिर्द उद रक कला के फट जाने के कारण वसा वा अन्त्र . ऊपर को उभर आती है। (२) नाभ्यंत्र-वृद्धि-नान का फ्ररक-उ.। फरक सुरीं, फ्रक सुर्रती, नुतूउल्-सुर्रह -१०। अम्बिलाइकल हर्निया Umbilical hernia, '. .मॉमफैलोसील Omphalocele-इं.।। इस प्रकार की वृद्धि में नाभिस्थल पर उद- "रंक कला के फट जाने के कारण वसा वा अन्य "ऊपर को उभर आती है। इस लिए नाभि भी उभरी हुई मालूम होती है। ऐसे रोगी को भारतवर्ष में सूण्डा ( पं० में धुनल ) कहते हैं। इसके तीन प्रकार है : - जन्मतः बाल्यावस्था में होने वाली, २-प्रौढ़ावस्था में होने वाली और __ लक्षण-वंक्षणके बाहरकी ओर उरुके उर्व भाग - में एक गोल उभार वा सूजन जान पड़ती है और खाँसते समय संक्षोभ इत्यादि लक्षण होते हैं। नोट-पूर्व यूनानी चिकित्सकों ने इस प्रकार की वृद्धि (फतक ) को भी वंक्षणस्थवृद्धि (फ़त्क उबिय्यह् ) संज्ञा से ही अभिहित किया है; परन्तु इसको ऊयस्थवृद्धि (त्क फहज़ी) कहना अधिक उपयुक्त एवं उचित है। डॉक्टरी में इसको फेमरलसील ( Femoralcele) भी कहते हैं। (५) अंडकोष वृद्धि (अंत्रांडवृद्धि )नो ते का तत्क-उ० । तत्क सफ्नी, क्रीलद, उवह , कर्व-अ०। स्क्रोटल हर्निया ( Sero tal hernia-01 ... इस प्रकार की वृद्धि में अंडकोष में मंत्र उतर भाता है। __ नोट-अंडकोष में पानी उतरने को कुरण्ड Hydrocele (मूत्रज वृद्धि) और वायु उतरने को वातज वृद्धि Physocele कहते हैं। देखो-वृद्धिः । (६ ) गुह्यन्द्रिक वृद्धि-शर्मगाह की For Private and Personal Use Only
SR No.020089
Book TitleAyurvediya Kosh Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamjitsinh Vaidya, Daljitsinh Viadya
PublisherVishveshvar Dayaluji Vaidyaraj
Publication Year1934
Total Pages895
LanguageSanskrit
ClassificationDictionary
File Size29 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy