SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 398
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir मन्त्रवृद्धि २५६ अन्त्रवृद्धि तत्क-उ० । फुत्कुल इस्तहियाई-अ०। प्युडेण्डल हर्निया Pudendal hernia इस प्रकार की वृद्धि में वसा वा अन्त्रका कोई भाग गुह्येन्द्रिय की भोर उतर पाता अर्थात् उभर श्राता है। (७) जठरस्थ वृद्धि-वेण्ट्रल हर्निया .. Ventral hernia-इं०। . यह वृद्धि नाभि के ऊपर होती है। दषने वाली वृद्धि दबने वाला फत्क-उ०। प्रत्क ग़िमाजी .-१०। रेज्युसिबल हर्निया Reducible hernia-ई। इस प्रकारकी वृद्धि चित लेटने पर आप ही या हाथ से उसको (प्रांवृद्धिको) विन्यस्त करने पर दूर हो जाती है, केवल उस समयके जब प्रीवा का मुख बंद हो या तंग । खाँसने या खड़े होनेकी दशा में वह फिर प्रकट होती है। रोगी के खाँसते . समय यदि शोधस्थल पर हाथ रक्खा जाए तो बह फैलता हुधा मालूम होता है। खाँसने से शोथ पर एक तरंग सी मालम होती है। यह शोथ उदर की दीवार से जुड़ा हुआ प्रतीत होता पाशित वृद्धि में परिणत होकर अशुभ लक्षणों को उत्पन्न कर देती है। लक्षण-उदर में शूल, चूसनवत् पीडा, प्राध्मान, मलबद्धता इत्यादि नानाप्रकार के उपद्रव खड़े हो जाते हैं। ऐसी स्थितिमें, उस अंतही को ऊपर स्वस्थान में पहुँचाने का प्रारम्भिक उपाय तो करना ही चाहिए, किन्तु साथ ही साथ उसमें शोथ न आने पाए इसका भी उपाय करते रहें। रोगी को अल्पाहार करना तथा पड़े रहना चाहिए। इधर उधर घूमना और खड़ा रहना हानिकर है। शोथयुक्त वृद्धि सूजा हुआ फ्रत्क, मुत्वर्म प्रत्क-उ० | तक वर्मी-१० । इन्फ्लेमा हनिया Infla. med herina-इं०।। इस प्रकार की वृद्धि में उत्तरी हुई वस्तु (प्रांत प्रभृति ) में शोथ हो जाता है। प्रस्तु, विकारी स्थल पर सूजन होती और उसमें पीला, उष्णता तथा रक्रवर्णता हो जाती है और उदरक कक्षा के प्रदाह के लक्षण भी प्रारम्भ हो जाते हैं। सूजन के बाद अवरोध के लक्षण उत्पा होजाते हैं। तीव्र वेदना होती और प्रायः न्यूनाधिक ज्वर, धमन, अजीर्ण मलबद्धतादि लक्षण हो जाते हैं। इसमें अन्य भाग विन्यस्त नहीं हो सकता है। अवरोधजन्य वृद्धि सुबह वाला (दार) तत्क-उ० । फतक सुची -०इन्कार्सिरेटेड हर्निया Incarcerated hernia-इं०। यह वृद्धि की एक अवस्था है जिसमें उतरी हुई वस्तु (प्राँत प्रभृति) कोष की ग्रीवा में किसी प्रकारका अवरोध होने अथवा किसी अन्य कारण से उसका विन्यास नहीं हो सकता । उस में प्रत्यंत वेदना होती है। कभी कभी तीन उदाधत्त के लक्षण उत्पन्न हो जाते हैं। इस प्रकार की वृद्धि वृद्ध व्यक्तियों को हो जाया करती है । पाशित वा अवरुद्अंत्रवृद्धि । फंसा हुआ फत्क-उ० । मृतक इनितनाक्री -अ० । स्ट्रैनुलेटेड हर्निया Strangulated hernja-ई१ । अंत्रवृद्धि होने की दशामें शोथ गोल, कोमल, और नमनीय( लचकदार ) होता है । हर्निया को विन्यस्त करने पर यदि भाँत होगी तो गदगद शब्द करेगी और झटके के साथ उदर गहर के भीतर प्रविष्ट होगी। मेदवद्धि होने पर उभार चपटा, ढीला और विषम होता है और विन्यस्त करने पर धीरे धीरे उदर में प्रविष्ट होता है। न दबने वालो वृद्धि न दबने वाला फत्क-उ०। फतक पासी -० । हरेब्युसिबल हर्निया Irreducible " hernia-इं०। .. इस प्रकार की वृद्धि में उतरी हुई वस्तु (अंत्र ... प्रभृति) दबाने से अपनी जगह पर लौट नहीं जाती, अपितु दिन दिन बढ़कर विविध प्रकार के दुःखों का कारण होती है। इस प्रकार की वृद्धि For Private and Personal Use Only
SR No.020089
Book TitleAyurvediya Kosh Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamjitsinh Vaidya, Daljitsinh Viadya
PublisherVishveshvar Dayaluji Vaidyaraj
Publication Year1934
Total Pages895
LanguageSanskrit
ClassificationDictionary
File Size29 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy