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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir प्रत्येक वैद्यों के देखने योग्य पुस्तकें । (१) सिद्धौषधिप्रकाश-सिर की चोटी से ले- (१४) आत्रेय बचनामृत-इस पुस्तक में पुरुष कर पैर की ऐंडी तक के सम्पूर्ण रोगों के अनुभव क्या है, वह नित्य है या अनित्य, पुनर्जन्म, सद्सिद्ध-प्रयोग । मू० १॥ वृत, सदाचार आदि विषयों को अपूर्व पुस्तक है (२) मधुमेह डायावटीज़-मधुमेह रोग पर सम्पूर्ण मू०॥)। विवेचन तथा चिकित्सा वर्णित है । मू० ॥) | (१५ ) पेटेन्ट औषधे और भारतवर्ष-प्रथम (३) स्त्रीरोगचिकित्सा-स्त्री सम्बंधी सम्पूर्ण रोगों भाग-इसमें पेटेन्ट बाजों की दवाइयों के नुस्खों का खुलाशा निदान तथा चिकित्सा | मू० ॥) की पोल खोली गई है। मू० ॥) (४) प्लीहा-प्लीहा नाश जरने को अचूक एवं सुगम (१६) पेटेन्ट औषधे और भारतवर्ष (द्वितीय उपाय लिखे गये हैं। मू०॥) भाग)-इसमें प्रथम भाग की शेष तथा अन्य सब (५) राजयक्ष्मा-ग्वालियर वैद्य सम्मेलन द्वारा पेटेन्ट दवाइयों के योग वर्णित हैं । मू०१)। पास संपादक अनुभूत योगमाला द्वारा लिखित (१७) भारतीय रसायन शास्त्र-सोना चांदी अपने ढंग की अनोखी पुस्तक है । मु०) बनाने की सरल विधियां वर्णित हैं । मू०॥)। (६) दमा ( श्वास )-दमा, दम से जाने वाली (१८) अंत्र वृद्धि-प्राचीन तथा अर्वाचीन स्वानुकहावत को इस पुस्तक ने जड़ से नष्ट कर दिया | भूत योग हैं । मू०।)। । (१६ ) स्नान चिकित्सा--मस्त स्नानों द्वारा (७) अर्श (बवासीर)-सब प्रकार की बवासीर चिकित्सायें वर्णित हैं । मू०१)। और मस्से दूर करने उपाय लिखे हैं । मू० ॥) | (२०) विन्ध्य माहात्म्य-विन्ध्यवासिनी देवी का (E) हरिधारितग्रंथरत्न-समस्त रोगों के सुलभ सम्पूर्ण इतिहास । भू० १॥)। __ योग भाषा टीका सहित हैं । मू० =) ( २१ ) चिकित्सक व्यवहार विज्ञान-विषय (E)वैद्यक शब्द कोष-अकारादि क्रम से संस्कृत | ___ नाम से ही प्रगट है । मू०।)। दवाइयों के नाम सरल दिही भाषामें वर्णित हैं। (२२) श्रीषधि-विज्ञान-पायुर्वेद विद्यार्थियों एवं म्०1) ___ नवीन वैद्यों की उत्तम पुस्तक । मू. १)। (१०) ब्रणोपचार पद्धति-समस्त शरीर के व्रणों ( २३ ) औषधि-गुण धर्म विवेचन (प्रथम एवं घाव, दाद, खाज, अादि २ पर सुन्दर २ श्र. भाग)-पुस्तक का विषय नाम से ही स्पष्ट है चूक प्रयोग । मू०) ___ मू० )। (११) सिद्धप्रयोग प्रथम भाग-'माला' द्वाराजी | (२४) औषधि-गुण धर्म विवेचन ( द्वितीय गत चार वर्षों से प्रयोग सिद्ध ज्ञात हुए हैं, उन्हीं भाग-मू०)। की श्लोक वद्ध भाषा टीका है । मू. १) (२५) दीर्घ-जीवन-गृहस्थियों के काम की अ. (१२) सिद्धप्रयोग (द्वितीय भाग)-इसमें 'माला' ___नोखी पुस्तक है । मू० ॥) मात्र । १६२७ ई. के परीक्षा किए गए योगों का धण न (२६) सर्प विष विज्ञान-समस्त सो की पहिश्लोक बद्ध भाषा टीकामें लिखे गए हैं । मू०॥) चान एव' चिकित्सा है। मू. १)। (१३) यकृत और प्लीहा के रोग-हर एक मतानु (२७) कोकसार-८४ श्रासनों सहित है, इसकी सार निदान तथा सद्यः फलप्रद चिकित्सा वर्णित शानी का अन्य कोई कोकसार नहीं निकला । है। मू. 1) भात्र मू० ॥) मात्र मिलने का पता दी अनुभूत योगमाला आफिस, बरालोकपुर-इटावा (यू०पी०) For Private and Personal Use Only
SR No.020089
Book TitleAyurvediya Kosh Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamjitsinh Vaidya, Daljitsinh Viadya
PublisherVishveshvar Dayaluji Vaidyaraj
Publication Year1934
Total Pages895
LanguageSanskrit
ClassificationDictionary
File Size29 MB
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