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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अञ्जोरी २९७ अजुकक व्यवहृत है । मुख व्रण में इसका दूध लगाया पूर्वीय सिन्धु नदी से लेकर अवध पर्यन्त, हिमाजाता है। बच्चों के यकृत रोग में इसका उपयोग : लय पर्वत ( ३००० फीट की ऊँचाई पर ) और लाभदायक है । शुष्क अजीर, बादाम की गुद्दी, श्राबू पर्वत । पिस्ता, इलायची छोटी, चिरोंजी, बेदाना, शकर ___उपयोग-इसके फलमे मुख्यतः शर्करा तथा इन सबको समभाग लेकर चूर्ण बनाएं और लुभाव वर्तमान होते हैं, तदनुसार यह स्नेहउसमें किञ्चित् केसर मिलाकर पुनः उसे पाठ जनक एवम् कोष्ठ मदुकर प्रभाव करते हैं । कोऽरोज तक गोघृत में डुबो रक्लें । मात्रा-२ तो० वद्धता (विवन्ध ), फुफ्फुस एवम् वस्ति रोगों में प्रति सुबह । गुगा-अत्यन्त पुष्टिकारक एवं यह मुख्यकर पथ्य वा आहार रूप से व्यवहार में कामोद्दीपक । पाते हैं। इनका पुल्टिस रूप में भी प्रयोग होता __२ या ४ त जे अजोर और थोड़ा सा शर्करा है। ( Punjab Products.) चर्ण इन दोनों को मिलाकर रात्रि में प्रोस में । अक्षरेह मक anjire-ahmaqa फ़ा. गुल्लर, खुला हुअा रक्खें और सबेरे इसे खाएँ। इसी गलर-हिं० । फाइकस ग्लोमरेटा Ficus प्रकार पक्षभर करें । गुण-सारीरोजाशामक, glomerata, Ro:).(Fruit of-)-oto निर्बल मनुष्य जिनके पोष्ठ, ज़बान और मुख अञ्जारे आदम anjire-adama-का० गुल्लर, चिड़चिड़ाते हों उनके लिए ताजा अंजीर उत्तम गूलर-हिं० । किसी किसी ने अन्य फल का नाम बल बदक श्रीपर है । ई० मे० मे० । लिखा हैं जिसको हिन्दी में "कलह" कहते हैं । विष्टब्धता, वस्ति तथा फुफ्फुस व्याधि में यह काबुल के पर्वतों पर उत्पन्न होता है । हकीम पथ्य रूप से इसका विशेष उपयोग होता है । अली गोलानी के कथनानुसार एक भारतीय वृक्ष (इं० मे० प्लां०) का फल है जो इन्द्रायन के समान गोल और डॉक्टर। मत ' रक वर्ण का होता है । लु० क. । प्रिटिश फार्माकोपिया में अजीर अंफिशल है। अञ्जोरे दश्ती anjire-dashti-फा. काकोप्रभाव-मभेदक या कोष्टमृदुकारी । यह दुम्बरिका सं० । कटूमर, कटूम्बरी, कठगूलर, कन्फेक्शियो सेना में पड़ता है । प्रयोग यह जंगली अञ्जीर-हिं० । देखो-कटुम्बर । Ficus सुस्वार और पोषक मेवा है । साधारण विष्टब्ध ___ oppositifolia, Rorb. ( Fruitof-) रोग में इसके कुछ दाने निहार मुंह खाने से -ले० । लु० क० । स० फा० इं० । कब्ज दूर हो जाता है । किन्तु, इसके बीज प्रांत्र में किंचिद्घर्षण करके कुछ मरोड़ उत्पस करते हैं। अओरेनेपाल anjire-naipāla-यज्ञछाल पा० । अञ्जीरो anjiri-हिं० संज्ञा स्त्रो० खबार, गुलनार, बेड, बेडू । फाइकस पामेटा ( Ficus Pal- अजारे वगदादी anjire-baghdadi फ० अखरोट वृक्ष के बराबर लम्बा एक वृक्ष है जिसके mata, For's... )-ले० । भगवाड़, काक, कोक, हेडू, इंजर, फाग, किर्मी, फगोरू, फागू, पत्ते चिनार पत्र सदृश और फल अञ्जीरके समान फोग, खबारी, फेना, थपुर, जमीर धूइ, धूडी, होते हैं । रुक अयमाना (देखो ) का फल । दहूलिया-पं० । फगवार-पश्तु० । अंजीर, इंजर लु० क०। -अफ़० । केब्री-राजपु. धौरा-म० प्र०। | अञ्जीरे यमन anjire-ya mana-फा० अंजीरे मेंपरी-गुजः । भगवार, थपुर-(ऊर्ध्व भारतीय बगदादी । लु० क. । मैदान) । ई० मे० प्लां० । | अोलक anjilaka-माज़न्दरानी खुब्बाज़ो का वटादि वर्ग पौधा । लु० क० ।। (N. 0. Urticacea.) अञ्जीश anjisha-सिराजुल कुत रब । लु० क० । उत्पत्तिस्थान-उत्तर पश्चिम भारतवर्ष, अजुकक anjukak-फ़ा० Pyrus comm For Private and Personal Use Only
SR No.020089
Book TitleAyurvediya Kosh Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamjitsinh Vaidya, Daljitsinh Viadya
PublisherVishveshvar Dayaluji Vaidyaraj
Publication Year1934
Total Pages895
LanguageSanskrit
ClassificationDictionary
File Size29 MB
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