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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra ( ९३० ) www.kobatirth.org अष्टाङ्गहृदये सुखोष्णं वावचा स्याच्चक्रतैलं विजानता ॥ १९ ॥ विभज्य देशं कालं च वातघ्नौषधसंयुतम् ॥ और अवस्थादि विशेषको जानकर सुखपूर्वक गरमाकेये और यंत्रसे निकाले तेलको प्रयुक्तकरे ॥ ॥ १९ ॥ परंतु देश और कालके विभागकरके और वातनाशक औषधोंसे संयुक्त किये तिस तेलको प्रयुक्तकरै ॥ Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir प्रततं सेकलेपांश्च विदध्याद् भृशशीतलान् ॥ २० ॥ और अत्यंत शीतलकिये सेक और लेपोंको निरंतर करै ॥ २० ॥ गृष्टिक्षीरं ससर्पिष्कं मधुरौषधसाधितम् ॥ प्रातः प्रातः पिबेद्भग्नः शीतलं लाक्षया युतम् ॥ २१ ॥ घृतसे संयुक्त और मधुर औषधोंसे साधित और शतिल और लाखसे संयुक्त प्रथम व्याईहुई गाय के दूधको प्रभातमें भग्नरोगी पत्रे ॥ २१ ॥ सत्रणस्य तु भग्नस्य व्रणो मधुघृतोत्तरैः ॥ कषायैः प्रतिसार्योऽथ शेषो भङ्गोदितः क्रमः ॥ २२॥ घायवाले भग्नरोगीका घाव शहद और घृतकी अधिकतावाले कार्यों से प्रतिसारित करना योग्य है, पीछे मंग में कहे क्रमको करै ॥ २२ ॥ लम्बानि व्रणमांसानि प्रलिप्य मधुसर्पिषा ॥ सन्दधीत व्रणान्वैद्यो बन्धनैश्चोपपादयेत् ॥ २३॥ लंबेहुये मांसोंको शहद और घृत से लेपितकर पीछे घात्रों को वैद्य धारणकरे और बंधनोंसे संयुक्तकरै ॥ २२ ॥ ऐसे भंगी चिकित्सा कही -- तान्समान्सुस्थिताज्ञात्वा फलिनीरोधकट्फलैः ॥ समङ्गाधातकीयुक्तैश्चूर्णितैरवचूर्णयेत् ॥ २४ ॥ धातकीरोधचूर्णैर्वा रोहन्त्याशु तथा व्रणाः ॥ समान और अच्छी तरह स्थित तिन घावोंको जानकर मालकांगनी लोध कायफल मजीठ धाय फूलके चूर्णौकरके अवचूर्णितकरे ॥ २४ ॥ अथवा धायके और लोधके चूणोंसे अवचूर्णितकरै ऐसे करनेसे शीघ्र घाव अंकुरको प्राप्त होजाते हैं ॥ इति भङ्ग उपक्रान्तः ॥ स्थिरधातोर्ऋऋतौ हिमे ॥ २५ ॥ मासलस्यात्पदोषस्य सुसाध्यो दारुणोऽन्यथा ॥ For Private and Personal Use Only
SR No.020074
Book TitleAshtangat Rudaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVagbhatta
PublisherKhemraj Krishnadas
Publication Year1829
Total Pages1117
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size30 MB
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