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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir उत्तरस्थानं भाषाटीकासमेतम् । (८३५) मासं विंशतिरात्रं वा ततश्चोद्धृत्य शोषयेत् ॥७९॥ समेषशृंगीपुष्पाणि सयष्टयाबानितानि तु॥ चूर्णितान्यंजनं श्रेष्ठं तिमिरे सान्निपातिके ॥ ८ ॥ और रात्रिमें विचरनेवाले जीवोंकी मजासे पूरितहुई हड्डियोंको लेवै ॥ ७८ ॥ पीछे सुरमेंसे संयुक्तकर बहतेहुये पानीमें एक महीनातक अथवा २० दिनतक वासित करे, पीछे निकासके सुखावै ॥ ७९ ॥ पीछे मेंढासिंगीके फूल और मुलहटीको मिला चूर्णकर सन्निपातके तिमिररोगमें हितहै ।। ८० ॥ ___ काचेऽप्येषा क्रिया मुक्त्वा शिरां यन्त्रनिपीडिताः॥ आन्ध्याय स्युर्मला दद्यात्स्राव्ये रक्ते जलौकसः ॥८१॥ काचरोगमेंभी शिरावेधको छोडकर यही क्रिया श्रेष्ठहै, क्योंकि यंत्रमें निपीडित हुये वातादि दोष अंधेपनको उपजानेके अर्थ होजातेहैं और स्त्रावितके योग्य रक्त होवे तो जोकोंको लगावै।। ८१॥ गुडः फेनोञ्जनं कृष्णा मरिचं कुङ्कुमाद्रजः॥ रसक्रियेयं सक्षौद्रा काचयापनमंजनम् ॥ ८२॥ गुड समुद्रझाग सुरमा पीपल मिरच केशरके चूर्णमें शहद मिलावै यह रसक्रियाहै यह अंजन काचरोगको दूर करताहै ।। ८२ ॥ नकुलान्धे त्रिदोषोत्थे तैमियविहितो विधिः॥ त्रिदोपके नकुलांबरोगमें तिमिरोगमें कही विधि हितहै ।। रसक्रियाघृतक्षौद्रगोमयस्वरसद्भुतैः ॥ ८३ ॥ तायंगैरिकतालीसैनिशान्ध्ये हितमंजनम् ॥ और रसक्रिया घृत शहद गोबरका स्वरस इन्होंमें द्रुत किये ॥ ८३ ॥ रसोत गेरू तालीसपत्र इन्होंकरके किया अंजन रातोंमें हितहै ॥ दन्ना विवृष्टं मरिचं राध्यान्ध्यांजनमुत्तमम् ॥ ८४॥ और दहीकरके घिसीहुई मिरचोंका अंजन रातोवामें श्रेष्ठहै ॥ ८४ ॥ करंजिकोत्पलस्वर्णगैरिकाम्भोजकेसरैः॥ पिष्टैगोमयतोयेन वर्तिर्दोषान्ध्यनाशिनी ॥ ८५॥ करंजुआ कमल स्वर्णगेरू कमलकेशर इन्होंको गोबरके पानीमें पीस बनाई बत्ती रातोंधेको नाशतीहै ॥ ५ ॥ अजामूत्रेण वा कौन्तीकृष्णास्रोतोजसैन्धवैः॥ अथवा रेणुका पीपल सुरमा सेंधानमकको वकरीके मूत्रमें पीस बनाई बत्ती रातोको नाशतीहै ।। For Private and Personal Use Only
SR No.020074
Book TitleAshtangat Rudaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVagbhatta
PublisherKhemraj Krishnadas
Publication Year1829
Total Pages1117
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size30 MB
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