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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (८३६) अष्टाङ्गहृदयेकालानुसारीत्रिकटुत्रिफलालमनशिलाः ॥८६॥ सफेनाइछागदुग्धेन रात्र्यान्ध्ये वर्त्तयो हिताः॥ और सीसम सूंठ मिरच पीपल हरडै बहेडा आँवला हरताल मनशिल ॥ ८६ ॥ समुद्रझागको बकरीके दूधमें पीस बनाई बत्ती रातोंधेमें हितहै ॥ संनिवेश्य यकृन्मध्ये पिप्पलीरदहन्पचेत् ॥ ८७॥ ताः शुष्का मधुना घृष्टा निशान्ध्ये श्रेष्ठमंजनम्॥ और यकृत्के मध्यमें पीपलोंको स्थापित कर नहीं जले ऐसी रीतिसे पकावै ॥ ८७ ॥ पीछे सुखजावे तब शहदमें घिस किया अंजन रातोंधे हितहै ॥ खादेच्च प्लीहयकृती माहिले तैलसर्पिषा ॥८॥ और यह रोगी तेल और घृतके संग भैसेकी तिल्लि और यकृत्को खावै ॥ ८ ॥ घृते सिद्धानि जीवन्त्याः पल्लवानि च भक्षयेत् ॥ तथातिमुक्तकैरण्डशेफाल्यभिरुजानि च ॥ ८९॥ मृष्टं घृतं कुम्भयोनेः पत्रैः पाने च पूजितम् ॥ और घतमें सिद्धकिये जीवंतीके पत्तोंको भक्षणकरे और तिवस अरंड संभालू शतावरीके पत्तोंको घृतमें सिद्ध करके खावै ॥८९॥ अगस्तिवृक्षके पत्तोंकरके सिद्ध किया घृत पान करनेमें पूजितहै ॥ धूमराख्याम्लपित्तोष्णविदाहे जीर्णसर्पिषा ॥ ९० ॥ स्निग्धं विरेचयेच्छीतैः शीतैर्दिह्याच्च सर्वतः॥ और धूम्राख्यरोग अम्लपित्त उष्ण विदाहों पुराने घृतसे ॥९० ॥ स्निग्धकिये मनुष्यको जुलाब देवै और शीतल औषधोंकरके सब ओरसे लेप करै ।। गोशकृद्रसदुग्धाज्यैर्विपकं शस्यतेऽञ्जनम् ॥ ९१॥ स्वर्णगैरिकतालीसचूर्णावापा रसक्रिया ॥ . और गायके गोबरका रस दूध घृतमें पकाई हुई वस्तु श्रेष्ठ अंजनहै ॥ ९१ ॥ सोना गेरू और तालीशपत्रके चूर्णसे बनाईहुई रसक्रिया श्रेष्ठहै ॥ मेदाशाबरकानन्तामंजिष्ठादार्वियष्टिभिः॥ ९२ ॥ क्षीराष्टांशं घृतं पक्कं सतैलं नावनं हितम् ॥ और मेदा लोध धाँसा मँजीठ दारुहलदी मुलहटी इन्होंकरके ॥९२ ॥ और आठवें हिस्सेका दूध मिलाके पकाये घृत सहित तेल नस्यमें हितहै ॥ तर्पणं क्षीरसर्पिः स्यादशाम्यति शिराव्यधः॥ ९३ ॥ और दूधसे निकलाहुआ घृतका तर्पण हितहै, और जो ऐसे नहीं शांत होवे तत्रनाडीका वीधना हितहै ॥ ९३॥ For Private and Personal Use Only
SR No.020074
Book TitleAshtangat Rudaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVagbhatta
PublisherKhemraj Krishnadas
Publication Year1829
Total Pages1117
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size30 MB
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