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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (८३४) अष्टाङ्गहृदयेशशगोखरसिंहोष्ट्रद्विजा लालाटमस्थि च ॥७१॥ श्वेतगोवालमरिचशंखचन्दनफेनकम् ॥ पिष्टं स्तन्याजदुग्धाभ्यां वर्तिस्तिभिरशुक्रजित् ॥ ७२ ॥ और खरगोस गाय गधा सिंह ऊंटकेदाँत और माथेकी हड्डियां ॥ ७१ ॥ सफेद गायके बाल मिरच शंख चंदन समुद्रझाग इन्होंको स्त्रीके दूध और बकरीके दुधसे पीस बनाई बत्ती तिमिररोगको और फूलेको जीततीहै ॥ ७२ ॥ रक्तजे पित्तवत्सिद्धिः शीतैश्यास्त्रं प्रसादयेत् ॥ रक्तसे उपजे तिमिररोगमें पित्तके तिमिरकी तरह चिकित्सा करनी परंतु शीतल औषधोंकरके रक्तको साफ करै । द्राक्षया नलदरोध्रयष्टिभिः शंखताम्रहिमपद्मपद्मकैः॥ ७३ ॥ __ सोत्पलैश्छगलदुग्धवर्तितैरनज तिमिरमाशु नश्यति ॥ ___ और दाख वालछड लोध मुलहटी शंख तांबा कपूर कमल पद्माक ॥ ७३॥ नीलाकमल इन्होंको बकरीके दूधमें पीसै यह योग रक्तजतिमिररोगको तत्काल नाशताहै ।। संसर्गसन्निपातोत्थे यथादोषोदयां क्रियाम् ॥ ७४॥ और संसर्ग तथा सन्निपातसे उपजे तिमिररोगमें दोषके उदयके अनुसार क्रियाको करै॥७॥ सिद्धं मधूककृमिजिन्मरिचामरदासभिः॥ सक्षीरं नावनं तैलं पिष्टैलेंपो मुखस्य च ॥७५॥ महुआ वायविडंग मिरच देवदार दूधमें सिद्धकिये तेलका नस्य अथवा मुखका लेप हितहै।।७५॥ नतनीलोत्पलानन्तायष्टयाह्वसुनिषण्णकैः ॥ साधितं नावने तैलं शिरोबस्तौ च शस्यते ॥७६ ॥ तगर नीलाकमल धमासा मुलहटी कुरुडूसे सिद्ध किया तेल नस्यमें और शिरोबस्तिमें श्रेष्ठहै ।। दद्यादुशीरनियूहचूर्णितं कणसैन्धवम् ॥ तच्छृतं सशृतं भूयः पचेक्षौद्रं धने क्षिपेत् ॥ ७७॥ शीते चास्मिन्हितमिदं सर्वजे तिमिरेऽञ्जनम् ॥ खसके काथमें चूर्णितकिया पीपल और सेंधानमक पकाके पीछे घृत मिला फिर पकायै पीछे शीतलहोने शहद मिलावै ॥ ७७ ॥ यह अंजन सन्निपातके तिमिररोगमें हितहै ॥ अस्थीनि मजपूर्णानि सत्त्वाना रात्रिचारिणाम् ॥ ७॥ स्रोतोजाजनयुक्तानि वहत्यम्भसि वासयेत् ॥ For Private and Personal Use Only
SR No.020074
Book TitleAshtangat Rudaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVagbhatta
PublisherKhemraj Krishnadas
Publication Year1829
Total Pages1117
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size30 MB
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