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उत्तरस्थानं भाषाटीकासमेतम् । (८३३) सुशीतान्सेकलेपादीन्युंज्यानेत्रास्यमूर्द्धस ॥ सारिवापद्मकोशीरमुक्ताशाबरचन्दनैः ॥१४॥ वर्तिःशस्त्रांजने चूर्णस्तथा पत्रोत्पलांजनः ॥
सनागपुष्पकर्पूरयष्ट्याह्वस्वर्णगैरिकैः ॥६५॥ पीछे इसके नेत्र मुख शिरमें सुंदर शीतलरूप सेंक और लेप आदिको प्रयुक्तकर और अनंतमूल पद्माक खस मोती लोध चंदनकरके ॥ ६४ ॥ करी बत्ती अंजनमें श्रेष्ठहै तथा तेजपात नीलाकमल रसोत नागकेशर कपूर मुलहटी स्वर्णगेरूसे अंजन श्रेष्ठहै ॥ १५ ॥
सौवीरांजनतुत्थकशृङ्गीधात्रीफलस्फटिककर्पूरम्।।
पञ्चांशं पञ्चांशं त्र्यंशमथैकांशमंजनं तिमिरघ्नम् ॥६६॥ सुरमा नीलाथोथा काकडाशिंगी आंवलाफल स्फटिकके सदृश कपूरको ले अर्थात् सुरमा ५ भाग नीलाथोथा ५ भाग और काकडाशिंगी आंवलाफल ये तीन २ भाग स्फटिकसदृश कपूर १ भाग इन सबोंका अंजन तिमिररोगको नाशताहै ॥ ६६ ॥
नस्यं चाज्यं शृतं क्षीरजीवनीयसितोत्पलैः॥ दूध जीवनीयगणके औषध मिसरी नीलाकमलसे पकाया घृत नस्यमें श्रेष्ठहै ।
श्लेष्मोद्भवेऽमृताक्वाथवराकणशृतं घृतम् ॥ ६७॥ विध्येच्छिरां पीतवतो दद्याच्चानु विरेचनम् ॥
काथं पूगाभयाशुण्ठीकृष्णाकुम्भनिकुम्भजम् ॥६८॥ और कफके तिमिररोगमें गिलोय त्रिफला पीपलमें पकाये घृतको ॥ १७ ॥ पान कराके तिसरोगीकी शिराको वाँध, पीछे सुपारी हरडै झूठ पीपल निशोत जमालगोटेकी जडके विरचनरूप काथका पान करावै ।। ६८ ॥
हीबेरदारुद्विनिशाकृष्णाकल्कैः पयोऽन्वितैः॥
द्विपञ्चमूलनियूहे तैलं पक्कं च नावनम् ॥६९॥ नेत्रवाला देवदार हलदी दारुहलदी पीपलके दूधसे संयुक्त किये कल्कोंकरके और दशमूलके काथसे पकाया तेल नस्यमें हितहै ॥ ६९ ॥
शंखप्रियंगूनेपालीकटुत्रिकफलत्रिकैः॥ दृग्वैमल्याय विमला वर्तिः स्यात्कोकिला पुनः॥७॥
कृष्णलोहरजोव्योषसैन्धवत्रिफलांजनैः॥ शंख मालकांगनी मनशिल सूंठ मिरच पीपल त्रिफला इन्होंसे बनाई विमल बत्ती दृष्टिके मलको दूर करती है पीछे ॥ ७० ॥ काले लोहेका चूर्ण सूंठ मिरच पीपल सेंधानमक त्रिफला सुरमा इन्होंसे बनाईहुई कोकिलानामक बत्तीभी पूर्वोक्त फलको देतीहै ।
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