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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (७९८) अष्टाङ्गहृदये___ बस्तमूत्रे हितं नस्यं चूर्णं वाध्मापयेद्भिषक् ॥ ३२॥ और त्रिफला झूठ मिरच पीपल दारुहलदी जवाखार तुलसीका भेद ॥ ३१॥ कालानिशोत ऊंगा करंजुआके बजि इन्होंके कल्ककरके और चौगुने बकराके मूत्रमें सिद्धकिया हुआ तेल नस्यमें हितहै अथवा वैद्यजन इनही औषधोंके चूर्णको नासिकामें चढावे ॥ ३२ ॥ नकुलोलूकमार्जारगृध्रकीटाहिकाकजैः॥ तुण्डैः पक्षैः पुरीषैश्च धूममस्य प्रयोजयेत् ॥३३॥ और नकुल उल्लू बिलाव गधि कृमि सर्प काक इन्होंकी तुंड पंख विष्टासे इस मृगीरोगवालको धूमां देना चाहिये ॥ ३३ ॥ शीलयेत्तैललशुनं पयसा वा शतावरीम् ॥ ब्राह्मीरसं कुष्ठरसं वचां वा मधुसंयुताम् ॥ ३४॥ अथवा दूधके संग लहसन खवावे अथवा दूधके संग शतादरीको खवावे और ब्राह्मीका रस कूठका रस वचको शहदके संग खावे ॥ ३४ ॥ 'समं कुबैरपस्मारो दोषैः शारीरमानसैः॥ यज्जायते यतश्चैषमहामर्मसमाश्रयः ॥३५॥ तस्माद्रसायनैरेनं दुश्चिकित्स्यमुपाचरेत् ॥ तदा चाग्नितोयादेविषमात्पालयेत्सदा ॥३६॥ और एकवार प्रकुपितहुये शारीर और मानसदोषोंकरके जो अपस्मार उपजताहै इसवास्ते यह रोग महामर्मके आश्रयहै ।। ३५ ॥ सो इस दुश्चिकित्स्यरोगको रसायन औषधोंकरके उपाचरणकरै आरै अपस्माररोगसे पीडित पुरुषको अग्नि जल विष इत्यादिकोंसे सदा रक्षा करतारहै ॥ ३६ ॥ मुक्तं मनोविकारेण त्वमित्थं कृतवानिति ॥ न ब्रूयाद्विषयैरिष्टैः क्लिष्टं चेतोऽस्य बृहयेत् ॥ ३७॥ . और इस मनके विकारसे छुटेहुये पुरुषको ऐसे नहीं कहै कि तू पहले इसप्रकार चेष्टाकरताथा किंतु प्यारे विषयोंसे तिसके क्लेशितहुए चित्तको बढावै ॥ ३७॥ इति श्रीबरीनिवासिवैद्यपंडितरविदत्तशास्त्रिकृताऽष्टांगहृदयसंहिताभाषाटीकायां उत्तरस्थाने भूततन्त्रे सप्तमोऽध्यायः॥ ७ ॥ अष्टमोऽध्यायः। -occoअथातो वर्त्मरोगविज्ञानीयमध्यायं व्याख्यास्यामः। अब वर्मरोगविज्ञानीयनामक अध्यायका व्याख्यान करेंगे ॥ सर्वरोगनिदानोक्तैरहितैः कुपिता मलाः॥अचाक्षुष्यविशेषेण प्रायः पित्तानुसारणः॥१॥शिराभिरूलप्रसृता नेत्रावयवमाश्रि For Private and Personal Use Only
SR No.020074
Book TitleAshtangat Rudaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVagbhatta
PublisherKhemraj Krishnadas
Publication Year1829
Total Pages1117
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size30 MB
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