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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir उत्तरस्थानं भाषाटीकासमेतम् । ब्राह्मीरसवचाकुष्ठाशङ्खपुष्पीभृतं घृतम् ॥ २४ ॥ पुराणं मध्यमुन्मादालक्ष्म्यपस्मारपाप्मजित् ॥ और ब्राह्मीका स्वरस वच कूठ शंखपुष्पी में सिद्ध किया हुआ पुराना घृत ॥ २४ ॥ श्रेष्ठ है और उन्माद अलक्ष्मी अपस्मार पापरोगको नाशता है | तैलप्रस्थं घृतप्रस्थं जीवनीयैः पलोन्मितैः ॥ २५॥ क्षीरद्रोणे पचेत्सिद्धमपस्मारविमोक्षणम् ॥ ( ७९७ ) और चार चार तोले प्रमाण जीवनीयगणकी औषधों में ६४ तोले तेल और ६४ तोले घृतको ॥ २५ ॥ दोसो छप्पनतोले २९६ दूधमें सिद्धकरे, यह वृत अपस्मार को नाशता है || कसे क्षीरेक्षुरसयोः काश्मय्र्येऽष्टगुणे रसे ॥ २६ ॥ कार्पिजीवनीयैश्च सर्पिः प्रस्थं विपाचयेत् ॥ वातपित्तोद्भवं क्षिप्रमपस्मारं निहन्ति तत् ॥ २७ ॥ और दूध ईखका रस इन्होंको २९६ तोले प्रमाण अलग अलग लेवे, और घृतसे आठगुणा खंभारीका रस || २६ || और तोला २ प्रमाण जीवनीयगणके औषध और चौंसठ तोले प्रमाण घृत मिला तिसको पकात्रे, यह वृत वात पित्तसे उपजेहुये उन्मादको शीघ्र ही नाशदेता है || २७ ॥ तद्वत्कासविदारीक्षुकुशक्वाथतं पयः ॥ और इसीप्रकार कांस विदारकंद ईख कुशाके काथमें सिद्ध किया हुआ दूध सिद्ध करनाचाहिये ॥ कूष्माण्डस्वर से सर्पिरष्टादशगुणे शृतम् ॥ २८ ॥ यष्टीकल्कमपस्मारहरं धीवाक्स्वरप्रदम् ॥ और अठारह कोहला के रस में घृतको सिद्धकरें ॥ २८ ॥ और सिद्ध होतेहुए मुलहटीका कल्क मिलादेवे, यह घृत बुद्धि वाणी स्वरको देनेवाला है अपस्मारको नाशता है || कपिलानां गवां पित्तं नावनं परमं हितम् ॥ २९ ॥ श्वशृगालविडालानां सिंहादीनां च पूजितम् ॥ और कपिला गौओंके पित्तकी नस्य देनी परमहित है ||२९|| और श्वान गीदड बिलाव सिंह इत्यादिकों का पित्तभीतिहै ॥ गोधान कुलनागानां वृषभर्क्षगवामपि ॥ ३० ॥ पित्तेषु साधितं तैलं नस्येऽभ्यङ्गे च शस्यते ॥ और गोह नकुल सर्प बैल रीछ गौ ॥ ३० ॥ इन्होंके पित्तों में सिद्ध किया हुआ तेल नस्यमें और मालिसमें हित कहाँ है | त्रिफलाव्योषपीतद्रुयवक्षारफणिजकैः ॥ ३१ ॥ श्यामापामार्गकार अवीजैस्तैलं विपाचितम् ॥ For Private and Personal Use Only
SR No.020074
Book TitleAshtangat Rudaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVagbhatta
PublisherKhemraj Krishnadas
Publication Year1829
Total Pages1117
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size30 MB
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