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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (६६०) अष्टाङ्गहृदयेसूंठ अतीश देवदार वायविडंग इंद्रजव मिरच इन्होंको अथवा अरनी सूंठ देवदार शांठि इन्होंको ॥२॥ अथवा पांडुरोगकी चिकित्सामें कहेहुये नवायस चूर्णको अथवा शुद्धिक अर्थ गोमूत्रके संग हरीतकियोंको अथवा त्रिफलाके क्वाथके संग कुटकी निशोत लोहा सूट मिरच पीपलके चूर्णको सेवै ॥ ३॥ अथवा त्रिफलेके काथके संग गूगलको अथवा शिलाजीतको सेवै ॥ मन्दाग्निःशीलयेदामगुरुभिन्नविबद्धविट्॥४॥तकं सौर्वचलव्योषक्षौद्रयुक्तं गुडाभयम्॥तकानुपानमथवा तद्वद्वा गुडनागरम् ॥५॥ और मंदाग्निवाला तथा कच्चा भारी भिन्न विबद्ध विष्टावाला ॥ ४ ॥ मनुष्य कालानमक झूठ मिरच पीपल शहद संयुक्त किये तक्रको सेवै अथवा तक्रके अनुपानसे संयुक्त गुड और हर डेको सेवै अथवा गुडसहित सूंठको खाके तक्रका अनुपान करै ॥ ५ ॥ आद्रकं वा समगुडं प्रकुंच्याईविवर्द्धितम् ॥ परं पञ्चपलं मासं यूषक्षीररसाशनः ॥ ६॥ गुल्मोदराशःश्वयथुप्रमेहाच्छ्वासप्र तिश्यालसकाविपाकान् ॥ सकामलाशोफमनोविकारान्कासं कर्फ चैव जयेत्प्रयोगः ॥७॥ अथवा बराबरके गुडसे संयुक्त किया और दो तोले प्रमाणसे नित्यप्रति बढाया हुआ और जब नित्यप्रति खानेसे एक दिनमें बीस तोले २० प्रमाण हो जावे तब नित्यप्रति घटाके २ तोले प्रमाणसे प्राप्त किये अदरकको एक महीनातक यूष दूध मांसका रस इन्होंको खानेवाला मनुष्य सेवै ।। ६ ॥ यह प्रयोग गुल्म उदररोग बवासीर शोजा प्रमेह श्वास पीनस अलसक अविपाक कामला शोजा मनका विकार खांसी कफ इन सबोंको जीतताहै ॥ ७ ॥ घृतमाकनागरस्य कल्कस्वरसाभ्यां पयसा च साधयित्वा । श्वयथुक्षवथूदराग्निसादैरभिभूतोऽपि पिबन्भवत्यरोगः ॥८॥ अदरकके कल्क और स्वरसकरके तथा दूधकरके घृतको पकाय पान करता हुआ मनुष्य शोजा छींक उदररोग मंदाग्निसे अभिभूतहुआभी आरोग्यको प्राप्त होताहै ॥ ८ ॥ निरामोबद्धशमलः पिबेच्छ्यथुपीडितः॥त्रिकटुत्रिवृतादन्तीचित्रकैः साधितम्पयः ॥ ९॥ मूत्रं गोर्वा महिष्या वा सक्षीरं क्षीरभोजनः॥ सप्ताहं मासमथवा स्यादुष्ट्रीक्षीरवर्तनः ॥१०॥ आमसे रहित और बंधेहुये विष्ठावाला और शोजेसे पीडित मनुष्य सुंठ मिरच पीपल निशोत जमालगोटेकी जड चीता इन्होंकरके साधित किये द्धको पावै ॥ ९ ॥ अथवा दूधको भोजन करताहुआ गाय अथवा भैसके मूत्रको दूधसे संयुक्त कर पायै अथवा सात दिनोतक अथवा महीने तक पान और भोजनको त्याग कर ऊंटनीके ही दूध को पीता रहै ॥ १० ॥ For Private and Personal Use Only
SR No.020074
Book TitleAshtangat Rudaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVagbhatta
PublisherKhemraj Krishnadas
Publication Year1829
Total Pages1117
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size30 MB
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