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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir . अष्टाङ्गहृदये .(२) इसके अनंतर आयुष्कामीय अर्थात् आयुकी वृद्धिको चाहनेवाले मनुष्य के लिये उत्तम उपाय जिसमें ऐसे अध्यायके व्याख्यानको वर्णन करेंगे ॥ अथशब्द मंगलवाचक भी है। अब तन्त्रकार, जो कुछ विषय इस ग्रन्थमें कहोगे सो अपनी ही बुद्धिकी कल्पनासे अथवा पूर्वऋषियोंके वचनप्रमाणके अनुरोधसे कहोगे ऐसे वादीको, उत्तर देता है कि, इति ह स्मेति-- इति ह स्माहुरात्रेयादयो महर्षयः॥ जिस प्रकारसे महर्षि अर्थात् लोकहितके उपदेशके लिये ईश्वरकी इच्छासे उत्पन्न जो आत्रेय और धन्वन्तरि आदि महात्मा तिन्होंने जो केवल लोकके अनुग्रहहेतुसे वर्णन किया है वही अर्थात् मात्रामात्रभी अधिक न हो ऐसे दूत बनकर उनके कहेहुयेही अर्थोंका दूसरे क्रममात्र से प्रतिपादन करता हूं यह बात.इसके ही संग्रहमें स्फुट भी कही है. __ अब शास्त्रकार, अपने शास्त्रके अनुष्ठानका प्रयोजन जो आयूरक्षण तिसमें विवक्षित अर्थात् रक्षित आयुके प्रयोजनको वर्णन करते हैं कि, आयुष्कामयेति--- आयुष्कामयमानेन धर्मार्थसुखसाधनम् । आयुर्वेदोपदेशेषु विधेयः परमादरः॥२॥ . . धर्म अर्थ सुख साधन आयुकी कामनावाले मनुष्यको आयुर्वेदीय उपदेशोंमें परम आदर करना उचित है । अब शास्त्रकार आयुर्वेदके महत्त्वको प्रगट करने के लिये जगत्में शास्त्रकी प्राप्तिहोनेकी शुद्धिको वर्णन करते हैं, ब्रह्मा स्मृत्वेति-- ब्रह्मा स्मृत्वायुषो वेदं प्रजापतिमजिग्रहत् । सोऽश्विनौ तौ सहस्राक्षं सोऽत्रिपुत्रादिकान्मुनीन् ॥३॥ तेऽग्निवेशादिकांस्ते तु पृथक् तन्त्राणि तेनिरे । प्रथम ब्रह्माजीने आयुर्वेदका स्मरण करके दक्षप्रजापतिको ग्रहण कराया, पीछे वह दक्षप्रजापतिजीने अश्विनीकुमारोंके लिये और दोनों अश्विनीकुमार इन्द्र के लिये और इन्द्र भात्रेय धन्वम्तार निमि काश्यप आदि मुनियोंके लिये आयुर्वेदको वर्णन किया. १न मात्रामात्रमप्यत्र किंचिदागमवर्जितम् । तेऽर्थाः स ग्रन्थसन्दर्भः संक्षेपाय क्रमोऽन्यथेति ॥ २ स्मरण करके इस अर्थसे इस बातको प्रगट करता है कि, ब्रह्माने इस आयुर्वेदको रचा नहीं क्यों कि यह आयुर्वेद नित्य (अर्थात् भूत भविष्यत् वर्तमान व्यवहारोंका कारण सब कालमें रहेनवाला ) है इससे स्मरण करना ही बनता है रचना बनती नहीं । For Private and Personal Use Only
SR No.020074
Book TitleAshtangat Rudaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVagbhatta
PublisherKhemraj Krishnadas
Publication Year1829
Total Pages1117
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size30 MB
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