SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 64
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ॥ श्रीः॥ अथ अष्टाङ्गहृदयम्। सूत्रस्थानं भाषाटीकासमेतम्। __--CONCow-- श्रीगणेशं नमस्कृत्य शारदामभिवन्य च । स्मृत्वा धन्वन्तरं देवं शोधनं क्रियते मया ॥१॥ अथ अष्टांगहृदयसंहितामें सूत्रस्थानकी भाषाटीका वर्णन करते हैं । · सब ही, विद्वज्जनसभामण्डन, निखिलजनोंको उभयलोकके सुसाधक सदुपदेशवचनोंसे अति 'आनंदके बढानेवाले, नानाप्रबन्धकी रचनामें महाकुशल, महात्मापुरुषोंने शास्त्रोंके आरम्भमें शास्त्रोंकी निर्विघ्नतापूर्वक परिसमाप्तिक निमित्त अपने इष्टदेवताके प्रीतिजनक वचन प्रगट किये हैं, इससे यह भी तन्त्रकार अपने अभीष्टदेवताको प्रणाम जिसमें पहले होवे ऐसे तन्त्रको आरम्भ करनेकी इच्छासे यह कहते हैं कि, रागादिरोगानिति रागादिरोगान्सततानुषक्तानशेषकायप्रसृतानशेषान् । औत्सुक्यमोहारतिदाञ्जघान यो पूर्ववैद्याय नमोऽस्तु तस्मै ॥१॥ सब काल संग उपजेहुये और सब शरीरों में फैले हुवे और शेषतासे रहित और विषय मोह ग्लानिके देनेवाले तथा राग वैर लोभ आदि रोगोंको जिन्होंने सम्पूर्णतासे नाश करदिया है जो अपूर्व अर्थात पूर्वी में पहले हैं उन धन्वन्तारको नमस्कार है रोगकी शांति होना इसका मुख्य प्रयोजन है शरीर आरोग्य होनेसे दीर्घायु होती है ईश्वरका भजन अधिक है इससे मोक्षकाभी साधक है।॥१॥ अब शास्त्रकार इष्टदेवताको प्रणाम करके शास्त्रके आरम्भ करनेकी इच्छासे यह कहते हैं कि, अथात इति-- ___ अथात आयुष्कामीयमध्यायं व्याख्यास्यामः॥ १ यह विशेषण हरएक अध्यायका अनुवर्तनसे समझा जाता है क्योंकि यह सब ही आयुर्वेद आयु. कामीय अर्थात् आयुकी वृद्धिको चाहने वाले पुरुषोंको सदुपदेशका विधायक है इससे ।। २ किसी अर्थको अधिकार करके वर्णन कियाजावे सो अध्याय कहाता है । सो ही कहा है कि अधिकृत्येयमध्यायं नामसंज्ञा प्रतिष्ठा इति । For Private and Personal Use Only
SR No.020074
Book TitleAshtangat Rudaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVagbhatta
PublisherKhemraj Krishnadas
Publication Year1829
Total Pages1117
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size30 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy