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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (५७०) अष्टाङ्गहृदयेमल्लिप्तं सौरणं कन्दं त्यक्त्वाग्नौ पुटपाकवत् ॥ . अद्यात्सतैललवणं दुर्नामविनिवृत्तये ॥ १५६ ॥ जमीकंदको माटीसे लेपित कर पीछे पुटपाककी तरह अग्निमें पका पीछे तेल और नमक मिला खावै यह बवासीरकी निवृत्तिमें परम औषधहै ॥ १५६ ।। मरिचपिप्पलिनागरचित्रकान्क्रमविवद्धितभागसमाहृतान् ॥ शिखिचतुर्गुणसूरणयोजितान्कुरुगुडेन गुडान्गुदजच्छिदः॥१५७॥ हे शिष्य! मिरच पीपल सूंठ चीता इन्होंको क्रमवृद्धिकरके ले और चीतासे चौगुना जमीकंदको ले पीछे गुडकरके बवासीरको नाशनेवाली गोलियोंको तूं कर ॥ १५७ ॥ चूर्णीकृताः षोडशसरणस्य भागास्ततोऽर्द्धन च चित्रकस्य ॥ महौषधाद् द्वौ मरिचस्य चैको गुडेन दुर्नामजयायपिण्डी॥१५८॥ सूक्ष्म चूर्णित किया जमीकंद १६ भाग और चीता ८ भाग और सूट २ भाग मिरच १. भाग इन्होंकी गुडमें बनाई गोली बवासीरके जीतनेके अर्थ कहीहै ॥ १५८ ।। पथ्यानागरकृष्णाकरञ्जवेल्लाग्निभिः सितातुल्यैः॥ वडवामुखइवजरयति बहुगुर्वपि भोजनं चूर्णम्॥१५९ ॥ हरडै झूठ पीपल करंजुआ वायविडंग चीता इन्होंमें बराबरकी मिसरी मिला चूर्ण करे यह वडवामुख अग्निकी तरह अत्यंत भारी भोजनको भी जराताहै ॥ १५९ ॥ कलिङ्गलागलीकृष्णावयपामार्गतण्डुलैः॥ भूनिम्बसैन्धवगुडैगुंडागुदजनाशनाः ॥ १६० ॥ इंद्रजव कलहारी पीपल चीता ऊंगा चौलाई चिरायता सेंधानमक गुड इन्होंकरके करी गोली बवासीरको नाशती है ॥ १६० ॥ लवणोत्तमवह्निकलिंगयवांश्चिरविल्वमहापिचुमन्दयुतान्॥पिब सप्तदिनं मथितालुडितान्यदि मर्दितुमिच्छसिपायुरुहान् ॥१६१॥ हे शिष्य ! तू गुदाके अंकुरोंको दूर करनेकी इच्छा करताहै तो सेंधानमक चीता इंद्रजव करंजुआ सूंठ नींव इन्होंसे युक्त और आलोडित किये तक्रको सातदिनोंतक पान कर ॥ १६१ ॥ शुष्केषु भल्लातकमय्यमुक्तं भैषज्यमार्गेषु तु वत्सकत्वक् ॥ सर्वेषु सर्वर्तुषु कालशेयमर्श:सुबल्यं च मलापहञ्च ॥ १६२ ॥ शुष्करूप गुदाके मस्सोंमें प्रधानरूप औषध भिलावाँ कहाहै और गीले बवासीरके मस्सोंमें परम औषध कूडाकी छाल कहीहै और सब प्रकारके मस्तों और सब ऋतुओंमें मथित किया तक्र परम औषध है और बलमें हितहै और दोषोंको नाशताहै ॥ १६२ ।। For Private and Personal Use Only
SR No.020074
Book TitleAshtangat Rudaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVagbhatta
PublisherKhemraj Krishnadas
Publication Year1829
Total Pages1117
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size30 MB
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