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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir चिकित्सास्थानं भाषाटीकासमेतम् । (५६९) चारतोले परिमाणसे पाठा रेणुका धमासा अम्लवेतस सूंठ मिरच पीपल दालचिनी इलायची कंकोल ब्राह्मी वेर लोंग वायविडंग पीपलामूल चीता इन्होंकरके ॥ १४९ ॥ और ४०० तोले गुड करके योजित और वातसे रहित स्थानमें १५ दिनतक स्थापित करे, पीछे इसको पान करता हुआ मनुष्य गुदाके मस्से और गुल्मको नाशताहै. और अग्निके बलकी प्रबलताको तत्काल करताहै ॥१५०॥ एकैकशोदशपले दशमूलकुम्भपाठाद्वयार्कघुणवल्लभकट्फलानाम् ॥ दग्धेशृतेऽनु कलशेन जलेन पक्के पादस्थिते गुडतुलां पलपञ्चकश्च ॥१५१॥ दद्यात्प्रत्येकं व्योषचव्याभयानां वर्मुष्टीद्वे यवक्षारतश्च ॥ दर्वीमालिंपन्हन्ति लीढो गुडोऽयं गुल्मप्लीहार्श:कुष्ठमेहाग्निसादान् ॥ १५२॥ दशमूल सफेदनिशोथ पाठा दोनों प्रकारके आक अतीस कायफलको अलग अलग चालीश . चालीश तोले भर ले, और अग्निमें दग्ध कर और १०२४ तोलेभर पानीमें पकावै, जब चतुर्थांश शेष रहै तब ४०० तोले गुड और वीश वीश तोले ॥ १५१॥ सुंठ मिरच पीपल चव्य हरडै और चीता तथा जवाखार आठ आठ तोले लेके मिलावै, जब कडछीपै चिपने लगै तब अग्निसे उतार खाया हुआ यह गुड गुल्म प्लीहरोग बबासीर कुष्ठ प्रमेह मंदाग्निको नाशताहै ।। तोयद्रोणे चित्रकमूलतुलार्द्ध साध्यं यावत्पादजलस्थमपीदम् ॥ अष्टौ दत्त्वा जीर्णगुडस्य फलानि क्वाथ्यम्भूयः सान्द्रतया सममेतत्॥१५३॥त्रिकटुमिसिपथ्याकुष्ठमुस्तावराङ्गकृमिरिपुदहनैलाचूर्णकीर्णोऽवलेहः॥ जयति गुदजकुष्टप्लीहगुल्मोदराणि प्रवलयति हुताशं शश्वदभ्यस्यमानः ॥१५४ ॥ और १०२४ तोले पानीमें २०० चीताकी जडको मिलाके पकावै, जब चतुर्थाश पानी शेष रहै तब ३२ तोले पुराना गुड मिलाके फिर पकावै, जब सांद्ररूप होजावै तब ॥ १५३ ॥ सूंठ मिरच पीपल शोफ हरडै कूठ नागरमोथा दालचिनी वायविडंग चीता इलायचीके चूर्ण करके मिश्रित किया, यह अवलेह बवासीर कुष्ठ प्लीहरोग गुल्मोदरको नाशताहै, और जठराग्निको बढाता है परंतु निरंतर अभ्यास करनेके योग्य यह अवलेह है ॥ १५४ ॥ गुडव्योषवरावेल्लतिलारुष्करचित्रकैः॥ अऑसि हन्ति गुटिका त्वग्विकारं च शीलिता ॥ १५५ ॥ गुड सूंठ मिरच पीपल त्रिफला वायविडंग तिल भिलावाँ चीता इन्होंसे बनी हुई गोली अभ्यस्त करनेसे बवासीर और त्वचाके विकारोंको नाशतीहै ॥ १५५ ॥ For Private and Personal Use Only
SR No.020074
Book TitleAshtangat Rudaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVagbhatta
PublisherKhemraj Krishnadas
Publication Year1829
Total Pages1117
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size30 MB
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