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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (५६८) .. अष्टाङ्गहृदयेप्रजयति गुदजप्लीहगुल्मोदराणि ॥१४४॥ पचेत्तुला पूतिकरंज कल्काइ मलतश्चित्रककण्टकार्योः ॥ द्रोणत्रयेऽपांचरणावशेषे पूते शतं तत्र गुडस्य दद्यात्॥१४५॥ पलिकञ्च सुचूर्णितं त्रि जातत्रिकटुग्रन्थिकदाडिमाश्मभेदम् ॥ परपुष्करमूलधान्यचव्यं हपुषामाकमम्लवेतसं च ॥१४६ ॥ शीतीभूतं क्षौद्रविंशत्युपेतमाद्राक्षाबीजपूरार्द्धकैश्च ॥ युक्तं कामंगण्डिकाभिस्तथेक्षोः सर्पिःपात्रे मासमात्रेण जातम् ॥ १४७॥ चुकं क्रकचमिवेदं दुर्नाम्नां वह्निदीपनं परमम् ॥ पाण्डुगरोदरगुल्मप्लीहानाहाश्मकृच्छ्रनम् ॥ १४८॥ और १०२४ तोले पानीमें ८०० तोले पूतीकरंजुआकी छालको पकावै जब २५६ तोले पानी शेषरहे तब ३२० तोले गुड और महीनपीसे हुये ३२ तोले सूंठ मिरच पीपलको मिलावै यह एकमहीनमें उपजा हुआ शुक्त जठराग्निको पकानेकी शक्ति उपजाताहै और अनुलोमकरके बवासीर प्लीहरोग गुल्मोदरको जीतताहै ।। १४४ ॥ और ४०० तोले पूतीकरंजुआकी छालको ८०० तोले चीता और कटेहलीकी छालको लेकर ३०७२ तोले पानीमें पकावै जब चौथाई भाग शेष रहे तब वस्त्रमेंसे छानकर तिसमें ४०० तोले गुडको मिलावै ॥ १४५ ॥ और चारचार तोलेभर चूर्णित किये दालचीनी इलायची तेजपात सुंठ मिरच पीपल पीपलामूल अनार पापाण भेद उत्तमरूप पोहकरमूल धनियां चव्य हाउबेर अदरक अम्लवेतको मिला ।। १४६ ॥ और शीतल होने पै ८० तोले शहद अदरक दाख विजोरा ये ४० तोले मिलावै और इच्छाके अनुसार ईखकी गंडेरियोंकरके युक्त करै पीछे घृतके पात्रमें जल १ एकमहीनातक धरै ॥ १४७ ॥ यह कांजी बवासीरोंको कतरनीकी तरह है और अग्निको दीपन करताहै और पांडु गरोदर गुल्म प्लीहरोग पधरी अफारा मूत्रकृच्छ्रको नाशताहै ॥ १४८ ॥ द्रोणं पीलरसस्य वस्त्रगलितं न्यस्तं हविर्भाजने युजीत द्विपलैमंदामधुफलाखर्जुरधात्रीफलैः॥ पाठामाद्रिदुरालभाम्लविदुलव्योषत्वगेलोल्लकैः स्पृक्काकोललवङ्गवेल्लचपलामूलाग्निकैः पालिकैः ॥ १४९ ॥ गुडपलशतयोजितं निवाते निहितमिदं प्रतिबंश्च पक्षमात्रात् ॥ निशमयतिगुदांकुरान्सगुल्माननलबलं प्रबलं करोति चाशु ॥१५०॥ पीलुवृक्षका रस वस्त्रसे छानाहुआ और १०२४ तोले परिमाणसे युक्त इसको घृतके पात्रमें युक्त करै, पीछे आठ आठ तोले परिमाण धायके फूल दाख खिजूर आमला इन्होंकरके और चार For Private and Personal Use Only
SR No.020074
Book TitleAshtangat Rudaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVagbhatta
PublisherKhemraj Krishnadas
Publication Year1829
Total Pages1117
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size30 MB
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