SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 622
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir चिकित्सास्थानं भाषाटीकासमेतम् । (५५९) प्राग्भक्तमानुलोम्याय फलाम्लं वा पिबेद् घृतम्॥चव्यचित्रकसिद्धं वा यवक्षारगुडान्वितम् ॥ ७२ ॥ पिप्पलीमूलसिद्धं वा सगुडक्षारनागरम् ॥ - और प्रभातके भोजनसे पहिले अनुलोमनपनेके अर्थ बिजोराआदिकरके अम्ल किये घृतको अथवा चव्य और चीतामें सिद्ध किये घृतको अथवा जवाखार और गुडसे अन्वित किये घतको पौवै ॥७२॥ अथवा पीपलामूल करके सिद्ध किया और गुड,जवाखार, सूंठसे, संयुक्त घृतको पीवै॥ पिप्पलीपिप्पलीमूलधानकादाडिमैघृतम् ॥७३॥ दना च साधितं वातशकृन्मूत्रविबन्धहृत् ॥ पलाशक्षारतोयेन त्रिगुणेन पचेद् घृतम् ॥७४॥ वत्सकादिप्रतीवापमर्शोघ्नं दीपनं परम् ॥ और पीपल, पीपलामूल,धनियां,अनार करके अथवा दहीकरके साधित घृत ॥७३॥ वात विष्ठा • मूत्रके बंधको हरता है और त्रिगुणे ढाकके खारके पानी करके पकाया ॥ ७४ ॥ और कूडाआदि प्रतिवापसे संयुक्त घृत बवासीरको नाशता है और अत्यन्त दीपन है। पञ्चकोलाभयाक्षीरयवानीविडसैन्धवैः॥७५॥ सपाठाधान्यमरिचैः सबिल्वैर्दधिमद् घृतम्॥ साधयेत्तज्जयत्याशु गुदवंक्षणवेदनाम् ॥ ७६ ॥प्रवाहिकां गुदभ्रंशं मूत्रकृच्छ्रे परिस्रवम् ॥ और पीपल पीपलामूल चव्य चीता सूठ हरडै दूध अजवायन मनियारीनमक सेंधानमक करके ।॥ ७९ ॥ और पाठा धनियां मिरच बेलगिरी दही इन्होंकरके साधित किया घृत गुदा और अंड संधिकी पीडाको तत्काल जीतता है ॥ ७६ ॥ और प्रवाहिका गुदभ्रंश मूत्रकृच्छ्र परिस्लवको जीतता है ॥ पाठाजमोदधनिकाश्वदंष्ट्रापञ्चकोलकैः ॥ ७७॥ सबिल्वैर्दधि चाङ्गेरीस्वरसे च चतुर्गुणे ॥ हन्त्याज्यं सिद्धमानाहं मूत्रकृच्छ्रे प्रवाहिकाम् ॥७८॥ गुदभ्रंशार्तिगुदजग्रहणीगदमारुतान् ॥ और पाठा अजमोद धनियां गोखरू सूंठ पीपल पीपलामूल चव्य चीता ॥ ७७ ॥ बेलगिरी दही इन्होंकरके और चौगुने चूकाके स्वरसमें सिद्धकिया घृत अफारा मूत्रकृच्छ्र प्रवाहिका ॥७८॥ गुदभ्रंश बवासीर ग्रहणीरोग वायुरोगको नाशताहै । शिखितित्तिरिलावानां रसानम्लान्सुसंस्कृतान् ॥७९॥ .. दक्षाणां वर्त्तकानां वा दद्याद्विड्वातसंग्रहे ॥ For Private and Personal Use Only
SR No.020074
Book TitleAshtangat Rudaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVagbhatta
PublisherKhemraj Krishnadas
Publication Year1829
Total Pages1117
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size30 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy