SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 621
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org (५५८) अष्टाङ्गहृदये वेरवालकम् ॥६५॥ द्विपलांशं पृथक्पादशेषे पूते गुडान्तले ॥ दत्त्वा प्रस्थं च धातक्याः स्थापयेद्धृतभाजने ॥ ६६ ॥ पक्षात्स शीलितोऽरिष्टः करोत्यग्निं निहन्ति च ॥ गुदजग्रहणीपाण्डुकुष्ठोदरगरज्वरान् ॥६७॥ श्वयथुप्लीहहृद्रोग गुल्मयक्ष्मवमीमीन् ॥ और ४०६ तोले पानीमें ३२ तोले हरडोंकी छालको पकाके ॥ ६४ ॥ और ६ ४ तोले आंवलाकी छाल और ४० तोले कैंथफल और तिससे आधी इन्द्रायण और लोध, मिरच, पीपल, वायविडंग एलुआ ॥ ६९ ॥ ये सब आठ आठ तोले इन सबको अलग अलग पकाके तिसमें • २४ तोले शेष रहे और वस्त्रकरके छानेहुये पानी में ८०० तोले गुड और ६४ तोले धक्के फूल, इन्होंको "देकर घृत के पात्रमें स्थापित करें || ६६ ॥। १५ दिनों के पश्चात् शीलित किया यह अरिष्ट अग्निको करताहै और बबासीर, ग्रहणी रोग, पांडु, कुष्ठ, उदररोग, विष, ज्वर, इन्होंको ॥ ६७ ॥ और -शोजा, प्लीहारोग, हृद्रोग, गुल्म, राजयक्ष्मा, छर्दी, कृमिको नाशता है || Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir जलद्रोणे पचेद्दन्तीदशमूलावरानिकान् ॥ ६८ ॥ पालिकान्पा दशेषे तु क्षिपेगुडतुलां परम् ॥ पूर्ववत्सर्वमस्य स्यादनुलोमितरस्त्वयम् ॥ ६९ ॥ और १०२४ तोले पानीमें जमालगोटाकी जड, दशमूल, त्रिफला, चीता ये चार चार तोलेभर मिलाके इन्होंको पावै ॥ ६८ ॥ जब २५६ तोले पानी शेष रहै तब ४०० तोले गुडको मिलावें और पहिलेकी तरह धक्के फूलों को मिला घृत के पात्रमें डाल स्थापित करे और १५ दिन के पश्चात् पान करने लगै यह अत्यंत अनुलोमको करता है ॥ ६९ ॥ पचेदुरालभाप्रस्थं द्रोणेऽपां प्रासृतैः सह ॥ दन्तीपाठाग्निविजयावासामलकनागरैः ॥ ७० ॥ तस्मिन्सिताशतं दद्यात्पाद स्थेऽन्यच्च पूर्ववत् ॥ लिम्पेत्कम्भं तु फलिनीकृष्णाचव्याज्य माक्षिकैः ॥ ७१ ॥ और १०२४ तोले पानीमें ६४ तोले धमासाको आठ आठ तोलेभर जमालगोटाकी जड, चीता, पाठा, हरडे, वांसा, आमला, सूंठके संग पकावै ॥ ७० ॥। जब २५६ तोले पानी शेष रहै तब ४०० तोले मिसरी मिलाके पावै और धवआदिके फूलों का परिमाण सब पूर्वोक्त अथवा अरिष्टके समान करें, परंतु विशेषकरके कलहारी, पीपल, चव्य, घृत, शहद, करके कलशेको लेपित करै ॥ ७१ ॥ For Private and Personal Use Only
SR No.020074
Book TitleAshtangat Rudaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVagbhatta
PublisherKhemraj Krishnadas
Publication Year1829
Total Pages1117
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size30 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy