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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (५६०) अष्टाङ्गहृदयेऔर मोर तीतर लावा इन्होंके अम्ल और अच्छीतरह संस्कृत किये मांसीके रसोंको ॥ ७९ ॥ और मुरगे तथा बत्तकोंके अम्ल और संस्कृत किये मांसोंके रसोंको विड्वातसंग्रहमें खावै ॥ वास्तुकाग्नित्रिवृदन्तीपाठाम्लीकादिपल्लवान् ॥ ८० ॥ अन्यच्च कफवातनं शाकं च लघुभेदि च ॥ सहिषयमके भृष्टं सिद्धं दधिरसैः सह।।८१॥ धनिकापञ्चकोलाभ्यां पिष्टाभ्यां दाडिमाम्बुना ॥ आद्रिकायाः किसलयैः शकलैरार्द्रकस्य च ॥ ८२ ॥ युक्तमारधूपेन हृद्येन सुरभीकृतम् ॥सजीरकं समरिचं विड सौवर्चलोत्कटम् ॥ ८३ वातोत्तरस्य रूक्षस्य मन्दानेद्धवर्चसः ॥ कल्पयेद्रक्तशाल्यन्नव्यञ्जनं शाकवद्रसान्॥८४॥गोगोधाच्छगलोष्ट्राणां विशेषात्कव्यभोजिनाम् ॥ बथुवा चीता निशोथ जमालगोटेकी जड पाठा आमली आदिके पत्ते ॥ ८० ॥कफ और वातको नाशनेवाला अन्य शाक हलका भेदी कडवी तोरी आदि शाक और हींगसे संयुक्त मिले हुये घृत तेलमें भुना हुआ और दहीका सर ॥ ८१ ॥ धनियां पीपल पीपलामूल चव्य चीता संठके चूर्ण करके और अनारके पानी करके और गीले धनियेंके पत्तोंकरके और अदरखके टुकड़ों करके सिद्ध ॥८२॥ और मनोहररूप अंगारकी धूपकरके युक्त और हिंगुआदि करके सुगंधित जीरा और मिरचोंकरके संयुक्त कालानमक और मनियारीनमक करके उत्कट शाक अर्थात् व्यंजन हित ।। ८३॥ . वातकी अधिकतावालोंके और रूक्षके और मंदाग्निवालेके और बद्ध विष्ठावाले के रक्तशाली चावलोंको व्यंजनके शाकके संस्कारकी तरह कल्पित करै ।।८४॥ और गाय, गोधा, वकरा, ऊंटके और विशेष करके मांसको खानेवाले जीवोंके मांसको रसोंकोभी संस्कृत किये शाककी तरह कल्पित करै ।। मदिरां शार्करं गौडं सीधुं तकं तुषोदकम् ॥ ८५॥ अरिष्टंमस्तुपानीयपानीयं चाल्पकं शृतम् ॥ धान्येन धान्यशुण्ठीभ्यां कण्टकारिकयाऽथवा ॥८६॥ अन्ते भक्तस्य मध्ये वा वातवोंऽनुलोमनम्॥विड्वातकफपित्तानामानुलोम्ये हि निर्मले॥ ॥८७॥ गुदे शाम्यन्ति गुदजाः पावकश्चाभिवर्द्धते ॥ मदिरा, शर्करा मदिरा, गौडी मदिरा, सीधु, तक्र, तुषोदक अर्थात् जवोंकी कांजी ॥ ८१ ॥ आरष्ट दहीका पानी, अल्पपकायाहुआ पानी और धनियाँकरके पकायाहुआ पानी अथवा धनियां और सूंठ करके पकायाहुआ पानी अथवा कटेहली करके पकायाहुआ पानी ॥ ८६ ॥ अथवा भोजनके अंतमें व मध्यमें दियाहुआ पानी वात और विष्टाको अनुलोमित For Private and Personal Use Only
SR No.020074
Book TitleAshtangat Rudaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVagbhatta
PublisherKhemraj Krishnadas
Publication Year1829
Total Pages1117
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size30 MB
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