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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir चिकित्सास्थानं भाषाटीकासमेतम् । (५५७) श्रेष्ठारसेन त्रिवृतां पथ्यां तक्रेण वा सह ॥५८॥ पथ्यां वापिप्प- . लीयुक्तां घृतभृष्टां गुडान्विताम् ॥अथवा सत्रिवृदन्ती भक्षये: दनुलोमनीम्॥५९॥ हते गुदाश्रये दोषे गुदजा यान्ति संक्षयम् ।। और त्रिफलाके क्वाथके संग निशोतको खावै और तक्रके संग हरडैको खावै ॥ ५८ ॥ अथवा पीपलसे संयुक्त और वृतमें भुनी और गुडसे अन्वित हरडैको खावै अथवा अनुलोमन करनेवाली हरडैको निशोत और जमालगोटाकी जडके संग खावै तौ ॥ ५९ ॥ गुदामें आश्रित हुये दोष नष्ट होजाते हैं तब गुदाके मस्से नाशको प्राप्त होते हैं । दाडिमस्वरसाजाजीयवानीगुडनागरैः ॥६० ॥ पाठया वा युतं तकं वातवर्णोऽनुलोमनम्।। सीधु वा गौडमथवा सचित्र कमहौषधम् ॥ ६१ ॥ पिवेत्सुरां वा हपुषापाठासौवर्चलान्वि· ताम् ॥ - और अनारका रस, जीरा, अजवायन, गुड, झूठ. इन्होंकरके ॥ ६॥ अथवा पाठाकरके युक्त हुआ तक बात और विष्टाको अनुलोमित करताहै, अथवा चीता और सूंठसे संयुक्त किये शीधुको पीये, अथवा चीता और सूंठसे संयुक्त करी गौडी मदिराको पावै ॥ ६१ ॥ अथवा हाऊबेर, पाटा, कालानमको अन्वित करी मदिराको पावै ॥ दशादिदशकैर्वृद्धाः पिप्पलीहिपिचुं तिलान्॥६२ ॥ पीत्वा क्षीरेण लमते बलं देहहुताशयोः ॥ और दशआदि दशोंकरके बढीहुई पिप्पलियों करके दो तोले तिलोंको ॥ ६२ ॥ दूधकेसंग पान करके देह और अग्निमें मनुष्य बलको प्राप्त होताहै अर्थात् प्रथमदिनमें दश पीपल और दो तोले तिलोंको दूधके संग पीथै और पीछे नित्यप्रति दश दश पीपल और वृद्धभाग करके दो दो. तोले तिलोंको दूधके संग पीवै ऐसे जान लेना ।। दुस्पर्शकेन बिल्वेन यवान्या नागरेण वा ॥१३॥ एकैकेनापि संयुक्ता पाठा हन्त्यर्शसां रुजम् ॥ और धमासाकरके अथवा बेलगिरीकरके अथवा अजवायन करके अथवा सूंठ करके ॥ ६३ ।। संयुक्त करी पाठा बवासीरके मस्सोंकी पीडाको हरती है ।। सलिलस्य वहे पक्त्वा प्रस्थाद्धमभयात्वचम् ॥ ६४ ॥प्रस्थं धाज्यादशपलं कपित्थानां ततोऽद्धतः ॥ विशालारोधमरिचकृ For Private and Personal Use Only
SR No.020074
Book TitleAshtangat Rudaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVagbhatta
PublisherKhemraj Krishnadas
Publication Year1829
Total Pages1117
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size30 MB
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