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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir चिकित्सास्थानं भाषाटीकासमेतम् । (५२५) तृष्णां च दुर्जयाम॥१५॥धात्रीरसेन वा शीतं पिबेन्मुद्दलाम्बु वा ॥ कोलमजसितालाजामाक्षकाविटकणाञ्जनम् ॥ १६ ॥ लिह्यारक्षौद्रेण पथ्यां वा द्राक्षां वा बदराणि वा ॥ जामन आंबके पत्ते खश वड जीवक इन्होंके अंकुर इन्होंसे उपजा ॥१४॥ और शहदसे संयुक्त और शीतल काथ पीया जावै तो छर्दि ज्वर अतिसार मूर्छा असाध्यतृषाको नाशताहै ॥ १५ ॥ अथवा आँवलेके रसके संग मूंगके पत्तोंके पकाये हुए और शीतल किये रसको पावै, अथवा बेरकी मज्जा मिशरी धानकी खील शहद पीपल रसोंत इन्होंको ॥ १६ ॥ चाटै, अथवा हरडैको शहदमें मिलाके चाटै, अथवा दाखको शहदमें मिलाके चाटै, अथवा बेरकी गिरकिो शहदमें मिलाके चाटै।। कफजायां वमन्निम्बकृष्णापीडितसर्षपैः॥१७॥ युक्तेन कोष्ण तोयेन दुर्बलं चोपवासयेत् ॥ आरग्वधादिनियूहं शीतं क्षौद्र युतं पिबेत्॥ १८ ॥ मन्थान्यवैर्वा बहुशश्छद्यन्नौषधभावितैः॥ कफनमन्नं हृद्यं च रागाः सार्जकभूस्तृणाः ॥१९॥ लीढं मनः शिलाकृष्णामरीचं बीजपूरकात् ॥ स्वरसेन कपित्थाच्च सक्षौद्रेण बमि जयेत् ॥ २०॥ खादेत्कपित्थं सव्योषं मधुना वा दुरालभाम् ॥ और कसे उपजी छर्दिमें नीब पीपल पीसीहुई सरसोंसे ॥ १७ ॥ युक्त और अल्प गरम पानी करके वमन करै और दुर्बल मनुष्योंको लंघन करावै और आरग्वधादि गणके औषधोंको शीतल कर और शहदसे संयुक्त कर पीवै ॥ १८॥ अथवा छर्दिको नाशनेवाले औषधों करके बहुतबार भावितकिये यवोंके मंथोंको पावै और हृदयमें हित और कफको नाशनेवाले अन्नको खावै और कुठेरक तथा भूतृणसे संयुक्त किये रागोंको सेवै ॥ १९ ॥ मनशिल पीपल मिरचको बिजोराके रसमें तथा शहदमें मिलाके चाटै अथवा कैथके रसको शहदमें मिलाके चाटै तब मनुष्य अर्दको जीतताहै ॥ २० सूंठ मिरच पीपल कैथको शहदके संग खावै अथवा धमासेको शहदके संग खावै ॥ अनुकूलोपचारेण याति द्विष्टार्थजा शमम् ॥ २१॥ कृमिजाकृमिहृद्रोगगदितैश्च भिषग्जितैः॥ यथास्वं परिशेषाश्च तत्कृताश्च तथामयाः॥ २२ ॥ और मनके अनुकूल उपचार करके द्विष्टअर्थसे उपजी छर्दि शांत होतीहै ॥ २१ ॥ कृमि रोग और हृदोगमें कहेहुये औषधोंकरके कृमियोंसे उपजी छर्दैि शांत होती है क्योंकि यथायोग्य कृमिरोग और हृद्रोग करके कियेहुये रोगभी पूर्वोक्त औषधों करके शांत होतेहैं ॥ २२ ॥ For Private and Personal Use Only
SR No.020074
Book TitleAshtangat Rudaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVagbhatta
PublisherKhemraj Krishnadas
Publication Year1829
Total Pages1117
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size30 MB
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