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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (५२४) अष्टाङ्गहृदयेयः॥ ८॥ व्यक्तसैन्धवसपिर्वा फलाम्लो वैष्किरोरसः॥स्त्रिग्धं च भोजनं शुण्ठीदधिदाडिमसाधितम्॥९॥कोष्णं सलवणं चात्र हितं स्नेहविरेचनम् ॥ सेंधानमकसे संयुक्त और कछुक गरम घृत पिया हुआ खांसी और हृदय द्रवसे संयुक्त और वायुसे उपजी छर्दिको विशेषकरके नाशता है ॥७॥ अथवा सुंठ मिरच पीपल सेंधानमक कालानमक सामरनमक करके सिद्ध किया घत पूर्वोक्त छर्दिको नाशता है; अथवा अनारके रस करके सिद्ध किया घृत पूर्वोक्त छर्दिको नाशता है अथवा सूंठ दही धनियां इन्होंकरके सिद्ध किया वृत पूर्वोक्त छार्दिको नाशता है अथवा पके हुये और बराबर भागसे मिले हुये दूध और पानीभी पूर्वोक्त छर्दिको नाशते हैं ॥ ८॥ अथवा अनार बिरोजा आदिकरके अम्लभावको प्राप्त किया और बहुतसे घृत और सेंधोनमकसे संयुक्त मुरगा आदि जीवोंके मांसका रस पूर्वोक्त छर्दिको नाशताहै, अथवा सूंठ दही अनारमें साधित किया और चिकना भोजनभी पूर्वोक्त छर्दिको नाशता है ॥९॥ अथवा कछुक गरम और नमकसे संयुक्त अरंडीके तेलका जुलाबभी इस पूर्वोक्त छर्दिमें हित है । पित्तजायां विरेकार्थं द्राक्षेक्षुस्वरसैस्त्रिवृत् ॥१०॥ सर्पिर्वा तैल्वकं योज्यं वृद्धं च श्लेष्मधामगम् ॥ऊर्ध्वमेव हरेत्पित्तं स्वादु तिक्तर्विशुद्धिमान् ॥ ११ ॥ पिबेन्मन्थं यवागू वा लाजैः समधु शर्कराम॥मुद्गजाङ्गलजैरद्याद्वयञ्जनैःशालिषष्टिकम् ॥ १२ ॥ मृदृष्टलोष्टप्रभवं सुशीतं सलिलं पिबेत्॥मुद्दोशीरकणाधान्यैः सह वा संस्थितं निशाम्॥१३॥द्राक्षारसं रसं वेक्षोर्गुडूच्यम्बु पयोऽपि वा। और पित्तसे उपजी छर्दिमें जुलाबके अर्थ दाख और ईखके रसके संग निशोथका देना हित है ॥ १० ॥ अथवा शाबरलोधमें सिद्ध किया घृतका देना योग्यहै और बढेहुए तथा कफके स्थानमें प्राप्तहुए पित्तको तिक्त और स्वादुद्रव्योंकरके वमनके द्वारा निकासै और विशेषकरके वमन विरेचन आदिको करनेवाला रोगी ।। ११॥ धानकी खीलोंसे बनाहुआ शहद और खांडसे संयुक्त मंथ अथवा यवागूको पीवै और मूंग तथा जांगलदेशके मांससे बनायेहुये व्यंजनोंके साथ शालीचावल को खावै ॥ १२ ॥ और माटीसेरहित लोष्ठकरके बुझाये और शीतल पानीको पावै, अथवा मूंग खस पीपल धनियां इन्होंके संग रात्रिमात्र स्थितरहे जलको पीवै ।। १३॥ अथवा दाख और ईखके रसको पावै अथवा गिलोयका पानी तथा दूध पावै ॥ जम्ब्वम्रपल्लवोशीरवटशृङ्गावरोहजः॥१४॥ क्वाथःक्षौद्रतयुतः पीतः शीतो वा विनियच्छति ॥ छर्दिज्वरमतीसारं मूर्ती For Private and Personal Use Only
SR No.020074
Book TitleAshtangat Rudaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVagbhatta
PublisherKhemraj Krishnadas
Publication Year1829
Total Pages1117
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size30 MB
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