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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (५२६) अष्टाङ्गहृदयेछर्दिप्रसङ्गेन हि मातरिश्वा धातुक्षयात्कोपमुपैत्यवश्यम् ॥ कु- . ऱ्यांदतोऽस्मिन्धमनातियोगप्रोक्तं विधि स्ताम्भनबृहणीयम् ॥२३॥सर्पिगुंडा मांसरसा घृतानि कल्याणकन्यूषणजीवनानि॥ पयांसि पथ्योपहितानि लेहाच्छार्दै प्रसक्तां प्रशमं नयन्ति॥२४॥ छर्दिके प्रसंगकरके जो धातुक्षय होताहै, तिसकरके वायु विय कोपको प्राप्त होताहै, इस कारणसे यहां वमनके अतियोगसे कहीहुई स्तंभन और बृंहणीय विधिको करै ॥ २३ ॥ घृत गुड मांसका रस कल्याणघृत त्र्यूषणघृत जीवनघृत और पथ्यपदार्थोकरके मिले हुये दूध ये सब खानेकरके प्रसक्त हुई छाको नाशते हैं ।। २४ ॥ अब हृद्रोग साधन कहतेहैं ।। हृद्रोगे वातजे तैलं मस्तुसौवीरतक्रवत् ॥ पिबेत्सुखोष्णं स बिडं गुल्मानाहार्तिजिच्च तत् ॥ २५॥ तैलं च लवणैःसिद्धं समूत्राम्लं तथागुणम् ॥ बिल्वं रास्त्रां यवान्कोलं देवदारु पुनर्नवाम् ॥ २६ ॥ कुलत्थान्पञ्चमूलं च पक्त्वा तस्मिन्पचे जले॥ तैलं तन्नावने पाने बस्तौ च विनियोजयेत् ॥ २७ ॥ वातसे उपजे हृदोद्गमें दहीका पानी कांजी तक इन्हें से संयुक्त और मनियारी नमकसे संयुक्त सुखपूर्वक गरम तेलको पावै यह गुल्म और अफाराकोभी जीतताहै ॥ २५॥ सेंधानमक कालानमक सांभरनमक मनियारीनमक खारीनमक गोमूत्र कांजीसे सिद्ध किया तेल वातज हृद्रोग गुल्म अफारेको जीतताहै और बेलगिरी रायशण यव बेर देवदार सांठी ॥ २६ ॥ कुलथी पंचमूलके काथमें तेलको पकावै वह तेल नस्य पान बस्तिकर्ममें नियुक्त करै ॥ २७ ॥ शुण्ठीवयस्थालवणकायस्थाहिंगुपौष्करैः॥ पथ्यया च शृतं पार्श्वहृद्रुजागुल्मजिद्धृतम् ॥ २८॥ सौवर्चलस्य द्विपले पथ्या पञ्चाशदन्विते।घृतस्य साधितः प्रस्थो हृद्रोगश्वासगुल्मजित् २९॥ झूठ आमला सेंधानमक हरडै हींग पोहकरमूल काकोलीसे सिद्ध किया घृत पशलीशूल हृद्रोग . गल्मरोगको जीतताहै ।। २८ ॥ चमकताहुआ कालानमक २ तोले हरडै ५० इन्होंमें साधित किया ६४ तोलेभर घृत हृद्रोग श्वास गुल्म रोगोंको जीतताहै ॥ २९ ॥ पुष्कराह्वशठीशुण्ठीबीजपूरजटाभयाः॥पीताः कल्कीकृताः क्षारघृताम्ललवणैर्युताः॥३०॥विकर्तिकाशूलहरा क्वाथः कोष्ण श्चतद्गणः ॥ यवानीलवणक्षारवचाजाज्यौषधैः कृतः॥३१॥ स ततिर्दारुबीजाह्वबिजपाशठिपौष्करैः॥ For Private and Personal Use Only
SR No.020074
Book TitleAshtangat Rudaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVagbhatta
PublisherKhemraj Krishnadas
Publication Year1829
Total Pages1117
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size30 MB
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