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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir चिकित्सास्थानं भाषाटीकासमेतम् । (५२३) पष्ठोऽध्यायः। . अथातश्छर्दिहृद्रोगतृष्णाचिकित्सितं व्याख्यास्यामः। इसके अनंतर छर्दिहृद्रोगतृष्णाचिकित्सितनामक अध्यायका व्याख्यान करेंगे। आमाशयोक्लेशभवाः प्रायश्छद्यों हितं ततः ॥ लङ्घनं प्रागृते वायोर्वमनं तत्र योजयेत् ॥ १॥ बलिनो बहुदोषस्य वमतः प्रततं बहु ॥ ततो विरेक क्रमशो हृद्यं मद्यैः फलाम्बुभिः॥२॥ क्षीरैर्वा सहसा ह्यद्धं गतं दोषं नयत्यधः। शमनं चौषधं रूक्ष दुबैलस्य तदेव तु ॥३॥ आमाशयके उत्क्लेशसे उपजनेवाली विशेषता करके छार्द होती है, तिसी कारणसे तिन्होंमें लंघन हित है परंतु वायुसे उपजी छर्दिमें लंघन नहीं करावै तहां वमनको युक्त करे ॥ १ ॥ परन्तु बलवाले और बहुत दोषोंवाले निरंतर अत्यंत गमन करते हुए मनुष्यको वमन देना उचित है पश्चात हृदयमें हितरूप जुलाबके औषधको मदिराक संग तथा दाख आदिके काथके संग ॥२॥ अथवा गायआदिके दूधके संग देवै क्योंकि यह जुलाव ऊर्ध्व गत दोषको नीचेको प्राप्त करता है, और रूक्ष तथा दुर्बल मनुष्यको शमनरूप औषध देना ॥३॥ परिशुष्कं प्रियं सात्म्यमन्नंलघु च शस्यते॥उपवासस्तथा यूषा रसाः काम्बलिकाःखलाः॥४॥शाकानि लेहभोज्यानि रागखा. •ण्डवपानकाः॥ भक्ष्याः शुष्का विचित्राश्च फलानि स्नानघर्ष णम् ॥५॥ गन्धाः सुगन्धयो गन्धफलपुष्पान्नपानजाः॥भुक्तमात्रस्य सहसा मुखे शीताम्बुसेचनम् ॥ ६॥ परिशुष्क, प्रिय, प्रकृतिके योग्य हलका अन्न श्रेष्ठहै और उपवास अर्थात लंघन और यूष और कांबलिक तथा खल ॥ ४ ॥ शाक लेह और भोज्य पदार्थ और ( राग खांडव ) पन्ना सूखे और विचित्रभक्ष्यपदार्थ सूखे और विचित्र फलस्नान उबटना आदिकरके घर्षण ॥ ५ ॥ सुगंधरूप और गंध फल पुष्प अन्न पानसे उपजेहुये गंध भोजनकिये हुये मनुष्यके मुखपै वेगसे शीतलपानीका सेचन ये सब छर्दिमें हितहैं ॥ ६ ॥ हन्ति मारुतजां छर्दैि सर्पिः पीतं ससैन्धवम् ॥ किश्चिदुष्णं विशेषेण सकासहृदयद्रवाम॥७॥व्योषत्रिलवणायं वा सिद्धं वा दाडिमाम्बुना॥ सशुण्ठीदधिधान्येन शृतं तुल्याम्बु वा प१ काम्बलिका लक्षण कृतान्नवर्ग में कहा है । For Private and Personal Use Only
SR No.020074
Book TitleAshtangat Rudaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVagbhatta
PublisherKhemraj Krishnadas
Publication Year1829
Total Pages1117
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size30 MB
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