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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (४८४) अष्टाङ्गहृदयेविदा-दिगणकाथकल्कसिद्धं च कासजित् ॥ विदारीआदिगणके काथ और कल्कमें सिद्धकिया घृत खांसीको जीतता है ॥ अशोकबीजक्षवकजन्तुनाञ्जनपद्मकैः ॥१०॥सबिडैश्च घृतं सिद्धं तच्चूर्णं वा घृतप्लुतम्॥लिह्यात्पयश्चानुपिबेदाजं कासादि पीडितः ॥११॥ और अशोकबीज सफेदऊंगा बायविडंग रसोत पद्माख ॥ १० ॥ मनियारी नमक इन्हों करके सिद्धकिये घृतको अथवा घृतमें मिलेहुये इन्होंके चूर्णको कासआदिसे पीडित हुआ मनुष्य से और तिसके ऊपर बकरीके दूधका अनुपान करै ।। ११ ॥ विडङ्ग नागरं रास्ना पिप्पली हिा सैन्धवम्॥भाङ्गीक्षारश्चतच्चूर्णं पिबेद्वा घृतमात्रया॥१२॥ सकफेऽनिलजे कासे श्वासहिध्माहताग्निषु॥ अथवा बायविडंग सूट रायसण पीपल हींग सेंधानमक भारंगी खार इन्होंके चूरणको यथायोग्य घृतकी मात्राके साथ पीवै ॥ १२ ॥ यह कफकी खाँसी वातकी खाँसी श्वास हिचकी नष्ट अग्नि इन रोगोंमें हितहै ॥ दुरालभां शृङ्गवेरं शठी द्राक्षां सितोपलाम् ॥ १३ ॥ लिह्यात्कर्कटशृंगी च कासे तैलेन वातजे॥ और धमासा अदरक कचूर दाख मिश्री ॥ १३ ॥ काकडासिंगी इन्होंको तेलमें मिलाके वातकी खांसीमें चाटै ॥ दुस्पर्शा पिप्पली मुस्तां भाङ्गी कर्कटकी शठीम्॥१४॥पुराणगुडतैलाभ्यां चूर्णितान्यवलेहयेत्॥ तद्वत्सकृष्णांशुण्ठी चसभाझी तद्वदेव च॥१५॥ पिवेच्च कृष्णं कोष्णेनसलिलेनससैन्धवाम्।। धमासा पीपल नागरमोथा भारंगी काकडासींगी कचूर ॥ १४ ॥ इन्होंके चूरणको पुरानगुड और तेलके साथ मिलाके चाटै, अथवा पीपली और सूंठको मिलाय पुराना गुड और तेलके साथ चाटै अथवा भारंगी और सूंठको मिलाय पुराने गुड और तेलके संग चाटै ये सब वातकी खांसी-- में हितहैं ॥ १५ ॥ पीपल और सेंधानमक मिला अल्प गरम किये जलके संग पीवै ॥ मस्तुना ससितां शुण्ठी दना वा कणरेणुकाम्॥१६॥पिवेबदर मज्ञो वा मदिरादधिमस्तुभिः ॥ अथवा पिप्पलीकल्कं घृत भृष्टं ससैन्धवम् ॥ १७॥ For Private and Personal Use Only
SR No.020074
Book TitleAshtangat Rudaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVagbhatta
PublisherKhemraj Krishnadas
Publication Year1829
Total Pages1117
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size30 MB
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