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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir चिकित्सास्थानं भाषाटीकासमेतम । (४८५) अथवा मिसरीसहित सुंठको दहीके पानीके संग पावै अथवा पीपलीसहित रेणुकाको दहीके संग पावै ॥ १६ ॥ अथवा मदिरा दही दहीका पानी इन्होंके संग विनोलेकी गिरी पौवै अथवा सेंधा नमकसे युक्त और घृतमें भुनेहुए पीपलके कल्कको मदिरा दही दहीके पानीके संग पावै, ये सब वातकी खाँसामें हितहैं ॥ १७ ॥ कासी सपीनसो धूमं स्नैहिकं विधिना पिवेत् ॥ हिमाश्वासोक्तधूमांश्च क्षीरमांसरसाशनः॥१८॥ खांसी और पीनसवाला रोगी स्नैहिकधूमको विधिकरके पावै, दूध और मांसके रसको खाने वाला वही रोगी हिचकी श्वासमें कहेहुए धूमोंको पीवै ॥ १८ ॥ ग्राम्यानृपोदकैः शालियवगोधूमषष्टिकान् ।। रसैौषात्मगुप्तानां यूपैर्वा भोजयेद्धितान् ॥१९॥ ग्राम्य और अनूपदेशके मांसके रसोंकरके अथवा उडद तथा कौंचके बीजोंके यूष करके शालीचावल जब गेहूँ शांठिचावल इन्होंमेंसे जो पथ्यरूप होवे तिसको खावे ॥ १९॥ यवानीपिप्पलीबिल्वमध्यनागरचित्रकैः॥रास्नाजाजीपृथक्पर्णी पलाशशठिपौष्करैः ॥ २० ॥ सिद्धां स्निग्धाम्ललवणां पेया मनिलजे पिवेत्॥कटिहृत्पार्श्वकोष्ठार्तिश्वासहिध्माप्रणाशिनीम्॥ २१॥ दशमूलरसे तद्वत्पञ्चकोलगुडान्विताम् ॥ पिबेत्पेयां समतिलां क्षैरेयीं वा ससैन्धवाम् ॥ २२ ॥ मात्स्यकौकुटवाराहैमासर्वा साज्यसैन्धवाम् ॥ वास्तुको वायसीशाकं कासन्नः सुनिषण्णकः॥२३॥ कण्टकार्याः फलं पत्रं बालं शुष्कं च मूलकम् । स्नेहास्तैलादयो भक्ष्याः क्षीरेक्षुरसगौडिकाः ॥२४॥ अजवायन पीपल बेलगिरीका गूदा सुंठ चीता रायसण जीरा पृश्निपर्णी ढाक कचूर इन्होंकरके ॥ २० ॥ सिद्धकरी और चिकनी और अम्ल तथा नमकसे संयुक्त पेयाको वातकी खांसीमें पीवै, यही पेया कटिरोग हृद्रोग पशलीशूल ओष्ठरोग श्वास हिचकी इन्होंको नाशती है ॥ २१ ॥ और वातकी खांसीमें दशमूलके रससे पीपल पीपलामूल चव्य चीता सूंठ गुड इन्होंसे अन्वित की पेयाको अथवा तिल और सेंधानमकसे संयुक्त दूधसे संस्कृतकरी पेयाको पीवै ॥ २२ ॥ अथवा मछली मुरगा सकरके मांसोंकरके साधितकरी घृत और सेंधानमकसे संयुक्त पेयाको पीवै ॥२३॥ और बथुवा मकोह कुरुडशाक खांसीको नाशते हैं कटेहलीका फल और पत्ता कच्ची और सूखी मूली तेल आदि स्नेह और दूध ईखका रस गुड इन्होंमें बने भक्ष्यपदार्थ सब वातकी खांसीमें हितहैं ॥ २४ ॥ For Private and Personal Use Only
SR No.020074
Book TitleAshtangat Rudaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVagbhatta
PublisherKhemraj Krishnadas
Publication Year1829
Total Pages1117
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size30 MB
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