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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir चिकित्सास्थानं भाषाटीकासमेतम् । (४८३) केवल वातसे उपजी खांसीको आदिमें स्नेहोकरके साधित कर और. वातनाशक औषधोंमें 'सिद्धकिये और चिकने पेया यूष रस आदिकरके और ॥ १॥ अवलेह धूम अभ्यंग अवगाहन करके साधितकरै, और बँधेहुयेमल और वातवाली खांसीको बस्तिकौकरके साधित करे, और पित्तसे उपजी खांसीको भोजनके उपरांत ॥ २ ॥ घृत तथा दूधके पीनेकरके साधे, और कफकी खांसीको स्निग्धरूप जुलाब करके साधै ॥ गुडूचीकण्टकारीभ्यां पृथक्त्रिशत्पलादसे ॥३॥ प्रस्थः सिद्धो घृताद्वातकासनुद्वह्निदीपनः ॥ और गिलोयका रस १२० तोले कटेहलीका रस १२० तोले उन्होंमें ॥ ३ ॥ सिद्धकिया ·६४ तोले घृत वातकी खांसीको नाशताहै और अग्निको जगाताहै ।। क्षाररास्नावचाहिगुपाठायष्टया धान्यकैः ॥ ४॥ द्विशाणैः सर्पिषःप्रस्थं पञ्चकोलयुतैः पचेत् ॥ दशमूलस्य निर्वृहे पीतो मण्डानुपायिना॥५॥सकासश्वासहत्पार्श्वग्रहणीरोगगुल्मनुत्॥ और जवाखार रायसण वच हींग पाठा मुलहटी धनियां ए सब ॥४॥ आठ आठ मासे भर लेवै पीपलामूल चव्य चीता झूठ पीपल येभी आठ आठ मासे ले कल्क बनाय तिसमें दशमूलका काथ बना तिसमें सिद्ध किया ६४ तोले घृत पीवै और मंडका अनुपान करै ॥ ५ ॥ यह घृत खांसी श्वास हृद्रोग पशाशूल ग्रहणीरोग गुल्म इन्होंको नाशताहै ।। द्रोणेऽपां साधयेद्रास्नादशमूलशतावरीः॥६॥ पलोन्मिताद्विकुडवं कुलत्थं बदरं यवम् ॥ तुलाई चाजमासस्य तेन साध्यं घृताढकम् ॥७॥समक्षीरं पलांशैश्च जीवनीयैःसमीक्ष्य तत्॥ प्रयुक्तं वातरोगेषु पाननावनवास्तिभिः॥८॥पञ्चकासाञ्छिरः कम्पं योनिंवंक्षणवेदनाम् ॥ सर्वाङ्गैकाङ्गरोगांश्चसप्लीहो निलाञ्जयेत् ॥९॥ और १०२४ तोलेभर पानीमें रायसण दशमूल शतावरी ॥ ६ ॥ ये सब चार चार तोलेभर लेवै और कुलथी बेर जब ये सब अलग अलग ३२ वतीस तोलेभर लेवै, और बकरेका मांस २०० तोलेभर लेवे, इन सबोंको मिला तिस करके २५६ तोले घृतको साधै ॥ ७ ॥परन्तु २५६ तोले दूध और जीवनीयगणके औषध चार चार तोलेभर मिलावै, पीछे, देशकालआदिका विचार कर यह घृत पान नस्य बस्तिकर्म करके वातरोगोंमें प्रयुक्त किया जाता है ॥ ८ ॥ और पांचप्रकारकी खांसी शिरका कंप योनि तथा अंडसंधिकी पीडा सर्वांगरोग एकांगरोग प्लीहारोग ऊर्ध्ववात इनसबोंको जीतताहै ॥ ९ ॥ For Private and Personal Use Only
SR No.020074
Book TitleAshtangat Rudaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVagbhatta
PublisherKhemraj Krishnadas
Publication Year1829
Total Pages1117
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size30 MB
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