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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (४४० ) अष्टाङ्गहृदये स्नावस्थितः कुर्य्याद्धस्यायामकुब्जताः ॥ वातपूर्णदृतिस्पर्श शोफं सन्धिगतोऽनिलः ॥१४॥ प्रसारणाऽऽकुञ्चनयोः प्रवृत्तिं च संवेदनाम् ॥ सर्वांगसंश्रयस्तोदच्छेदस्फुरणभञ्जनम् ॥ १५ ॥ स्तम्भमाक्षेपणं स्वापं सन्ध्याकुञ्चनकंपनम् ॥ यदा तु धमनीः सर्वाः कुद्धोऽभ्येति मुहुर्मुहुः ॥ १६ ॥ तदांगमाक्षिपत्येष व्याधिराक्षेपकः स्मृतः ॥ और संधियों में कुपित हुवा वायु वमन करके पूरित मसककी स्पर्शके समान स्पर्शत्राले शोजेको ॥ १४ ॥ और प्रसारणमें और आकुंचन में पीडासहित प्रवृत्तिको करता है और सब अंगों में कुपित हुवा वायु तोद, भेद, फुरना, भंजन ॥ १५ ॥ स्तंभ, आक्षेपण स्वाद, संधिका आकुंचन, कंपन को करता है, जब कुपित हुआ वायु वारवार धमनी नाडियों के सन्मुख प्राप्त होता है ॥ १६ ॥ तत्र अंगको कंपाता है यह आक्षेपक रोग कहा है || अधः प्रतिहतो वायुर्व्रजत्यूर्ध्वं हृदाश्रयः ॥ १७ ॥ नाडीः प्रवि श्य हृदयं शिरःशङ्खौ च पीडयन् ॥ आक्षिपेत्परितो गात्रं धनुर्व च्चास्य नामयेत् ॥ १८ ॥ कृच्छ्रादुच्छ्वसिति स्तब्धत्रस्तमीलि तदृक्ततः ॥ कपोत इव कुजेत्स निःसंज्ञः सोऽपतन्त्रकः ॥ १९ ॥ स एव चापतानाख्यो मुक्ते तु मरुता हृदि ॥ अश्नुवीत मुहुः स्वास्थ्यं मुहुरस्वास्थ्यमावृते ॥ २० ॥ नीचेको प्रतिहत हुवा और ऊपर गमन करता हुवा वायु हृदयमें आश्रित हुई ॥ १७ ॥ नाडियों में प्रवेशकर हृदय शिर दोनों कनपटीको पीडित करता हुवा वह वायु सब तर्फसे शरीरको आक्षेपित करता है और धनुषकी तरह नवाय देता है ॥ १८ ॥ तब मनुष्य कृच्छ्रसे श्वासको लेता है और स्तब्ध तथा शिथिल और मिचेहुये नेत्रोंवाला पीछे कबूतर की तरह शब्द करनेवाला और संज्ञा से रहित हो जाता है यह अपतंत्रक वातव्याधि रोग कहाता है ।। १९ ॥ वायु करके मुक्त हुवे हृदयमें क्षणमात्र स्वस्थपनेको प्राप्त होवे और वायुकरके आच्छादित हुए हृदयमें स्वस्थपने को नहीं प्राप्त होवे यह अपतान वातव्याधि होता है ॥ २० ॥ गर्भपातसमुत्पन्नः शोणितातिस्रवोत्थितः ॥ अभिघातसमुत्थश्च दुश्चिकित्स्यतमो हि सः ॥ २१ ॥ गर्भपातसे पीछे स्त्रियोंके उपजताहुआ और कदाचित् रक्तके अतिस्राव से स्त्रियोंके उपजाहुवा और पुरुषों के अभिवातसे उपजाद्दुवा अपतन्त्र रोग अत्यन्त कष्टसाध्य होता है ॥ २१ ॥ For Private and Personal Use Only
SR No.020074
Book TitleAshtangat Rudaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVagbhatta
PublisherKhemraj Krishnadas
Publication Year1829
Total Pages1117
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size30 MB
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