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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir निदानस्थानं भाषाटीकासमेतम् । ( ४४१ ) मन्ये संस्तभ्य वातोऽन्तरायच्छन्धमनीर्यदा || व्याप्नोति सक लं देहं जत्रुरायम्यते तदा ॥ २२ ॥ अन्तर्द्धनुरिवाङ्ग व वेगैः स्तम्भं च नेत्रयोः ॥ करोति जृम्भां दशनं दशनानां कफोइम म् ॥ २३ ॥ पार्श्वयोर्वेदनां वाक्यहनुपृष्ठशिरोग्रहम् ॥ अन्तरा याम इत्येष सो ग्रीवा और पशलीमें आश्रित हुई नाडियों में भक्तिरको प्राप्त होता हुआ वायु जब घमनी नाडियोंको ग्रहणकरके सकल देहमें व्याप्त होता है, तब जोते टेढे हो जाते हैं ॥ २२ ॥ पीछे धनुषकी तरह भीतरको अंग नय जाता है और नेत्रों में वेगोंकर के स्तंभको करता है और जंभाई दंतोका डसना, कफकी छर्दि, इन्होंको करता है ॥ २३ ॥ और दोनों पालियों में पीडाको और बोलना, भोंडी, पृष्ठभाग शिरके पकडनेको करता है यह अंतरायाम वातव्याधि है - बाह्यायामश्च तद्विधः ॥ २४ ॥ देहस्य बहिरायामात्पृष्ठतो नी यतेशिरः ॥ उरश्वोत्क्षिप्यते तत्र कन्धरा चावमृद्यते ॥ २५ ॥ दन्तेवास्ये च वैवर्ण्य प्रस्वेदः स्त्रस्तगात्रता ॥ वाह्यायामं २६ ॥ धनुस्तम्भं ब्रुवते वेगिनं च तम् ॥ और ऐसेही लक्षणोंवाला बाह्यायाम रोग होता है ॥ २४ ॥ परंतु देहको बाहिरकी तर्फ विस्तृत करने से और पृष्टभागसे शिर पृष्ठभाग के सन्मुख हो जाता है और छाती ऊंची हो जाती है और ग्रीवा मुडजाती है ॥ २५ ॥ दंतों में और मुखमें वर्ण बदल जाता है और अत्यंत पसीना अंगों की शिथिलता उपजती है तिसको बाह्यायाम कहते हैं और कितनेक धनुस्तम्भ कहते हैं और कितनेक वैद्य इस रोगको वेगी कहते हैं ॥ २६ ॥ aणं मर्माश्रितं प्राप्य समीरणसमीरणात् ॥ व्यायच्छन्ति तनुं दोषाः सर्वामापादमस्तकम्॥२७॥ तृष्यतः पाण्डुगात्रस्य त्रणाया मःस वर्जितः॥गते वेगे भवेत्स्वास्थ्यं सर्वेष्वाक्षेपकेषु च ॥२८॥ - वायु के प्रेरणसे वातआदि दोष मर्ममें आश्रित हुए व्रणको प्राप्त होके चरणोंसे मस्तकतक सकल देहको विशेषकरके आक्रमित करते हैं ॥ २७ ॥ तृषावालेको, पांडु शरीरवालेको यह व्रणायाम असाध्य कहा है और सब प्रकार के आक्षेपोंमें वेगों की शांति में स्वस्थपना होता है अन्यथा नहीं २८ ॥ जिह्वातिलेखनाच्छुष्कभक्षणादभिघाततः॥कुपितो हनुमूलस्थः स्रंसयित्वाऽनिलो हनू ॥ २९ ॥ करोति विवृतास्यत्वमथवा सं वृतास्यताम्॥ हनुस्रंसः सतेन स्यात्कृच्छ्राच्चर्वणभाषणम्॥३०॥ For Private and Personal Use Only
SR No.020074
Book TitleAshtangat Rudaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVagbhatta
PublisherKhemraj Krishnadas
Publication Year1829
Total Pages1117
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size30 MB
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