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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir निदानस्थानं भाषाटीकासमेतम् । हुआ ॥५॥ और रिक्त हुये स्त्रोतोंमें बिचरता हुआ और तिन्हीं स्रोतोंको अत्यन्त करके भारत करताहुआ और अन्य दोषोंसे पारित हुये तिन स्रोतोंसे आवरणको प्राप्त हो बलवाला वायु कुपित होता है ॥ ६ ॥ तत्र पक्वाशये क्रुद्धः शूलानाहान्त्रकूजनम् ॥मलरोधाश्मवर्मा शस्त्रिकपृष्ठकटीग्रहम्॥७॥करोत्यधरकायेषु तांस्तान्कृच्छानु पद्रवान् ॥ आमाशये तृड्वमथुश्वासकासविषूचिकाः ॥८॥ कण्ठोपरोधमुद्गारान्व्याधीनूज़ च नाभितः॥ श्रोत्रादिष्विन्द्रि यवधं त्वचि स्फुटनरूक्षणे ॥९॥ रक्ते तीत्रा रुजः स्वापं तापं रोगं विवर्णताम् ॥ अरूष्यन्नस्यविष्टम्भमरुचिं कृशतांभ्रमम् ॥ १० ॥ मांसमेदोगतो ग्रन्थीस्तोदाद्यान्कर्कशान्भ्रमम् ॥ गुर्वषं चातिरुस्तब्धमुष्टिदण्डहतोपमम् ॥ ११ ॥अस्थिस्थः सक्थिसन्ध्यस्थिशूलं तीव्र बलक्षयम् ॥ मजस्थोस्थिषु सौषि र्य्यमस्वप्नं स्तब्धतां रुजम् ॥१२॥ शुक्रस्थः शीघ्रमुत्सर्ग संगं विकृतिमेव च ॥ तद्वद्गर्भस्य शुक्रस्थः शिरास्वाध्मानरिक्तते ॥ १३॥ तत्स्थःपक्वाशयमें कुपित हुवा वायु शूल, अफारा आंतोंका बोलना, मलरोध, पथरी, वर्भ रोग, बबासीर, त्रिकस्थान, पृष्ठ कटीका बन्ध इन सबोंको करता है ॥ ७ ॥ और नीचे शरीरोंमें कुपित हुवा वायु कष्टसाध्य तिन तिन उपद्रवोंको करता है और आमाशयमें कुपित हुवा वायु तृषा, छर्दी, श्वास, खांसी, हैजा ॥ ८ ॥ कण्ठरोध उद्गाररोगको और नाभिसे ऊपर नहीं कही 'हुई व्याधियोंको करता है और कान आदि इंद्रियोंके स्थानोंमें कुपितहुवा वायु इंद्रियोंको नाशता है और त्वचामें कुपित हुवा, वायु त्वचाका फटना और रूखापनको करताहै ॥९॥ रक्तमें कुपित हुवा वायु तीव्रपीडा, स्वाप, ताप वर्णका बदलजाना, रोग, व्रण, अन्नका विष्टंभ, अरुचि, कृशपना, भ्रम को करता है ॥ १० ॥ मांस और मेदमें कुपित हुवा वायु चभका आदिसे संयुक्त और कठोर ग्रंथियाको भ्रम तथा भारी अत्यन्त पीडाबाला, स्तब्ध, मुक्का तथा दंडआदि करके हत हुयेकी तरह उपमावाले अंगको करता है ॥ ११ ॥ हड्डियोंमें कुपितहुवा वायु सक्थि, संधि, हड्डीमें शूलको और बलके अत्यन्त नाशको करताहै और मजामें कुपितहुआ वायु हड्डियोंमें सौषिर्य्यपना शयनका अभाव स्तब्धपना पीडाको करता है ॥ १२ ॥ वीर्यमें कुपित हुवा वायु वीर्यको और गर्भके शीघ्र छुटने और संग तथा विकृतिको करता है नाडियोंमेंही कुपि. तहुवा वायु नाडियोंमेंही अफारा और रिक्तपनेको करता है ॥ १३ ॥ नसोंमें कुपित हुवा वायु गृध्रसीरोग आयामरोग कुबडेपनको करता है ॥ For Private and Personal Use Only
SR No.020074
Book TitleAshtangat Rudaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVagbhatta
PublisherKhemraj Krishnadas
Publication Year1829
Total Pages1117
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size30 MB
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