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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (४३८) अष्टाङ्गहृदये पञ्चदशोऽध्यायः। अथातो वातव्याधिनिदानं व्याख्यास्यामः। इसके अनंतर वातव्याधिनिदाननामक अध्यायका व्याख्यान करेंगे । सर्वार्थानर्थकरणे विश्वस्यास्यैककारणम् ॥ अदुष्टदुष्टः पवनः शरीरस्य विशेषतः॥१॥ इस जगत्का सब प्रकारसे अदुष्ट हुवा अर्थको करनमें तथा दुष्ट हुआ अनर्थको करनेमें वायु .. प्रधान कारण है. सो शरीरका विशेषकरके प्रधान कारण है ॥ १॥ स विश्वकर्मा विश्वात्मा विश्वरूपः प्रजापतिः॥ स्रष्टा धाता विभुर्विष्णुः संहर्ता मृत्युरन्तकः॥२॥तददुष्टौ प्रयत्नेन यतितव्यमतः सदा ॥ और यही वायु विश्वकर्मा अर्थात् शरीरका जन्माना और बढाना धारण करना आदि प्रयोजनोंको करनेवाला है और यही वायु विश्वात्मा अर्थात् शुभोंका आदिकारण है और यही वायु विश्वरूप अर्थात विश्वरूप स्वभाववाला है और यही वायु प्रजापति अर्थात् प्रजाका पालनेवाला है और यही वायु स्रष्टा अर्थात् संसारको रचनेवाला है और यही वायु धाता अर्थात् जगत्को धारण करनेवाला है और यही वायु विभु अर्थात् समर्थ है और यही वायु विष्णु अर्थात् जगत्में व्याप्तरूप है और यही वायु संहर्ता अर्थात् सृष्टिको हरनेवाला है और यही वायु मृत्यु अर्थात् यमरूप है, और यही वायु अंतक अर्थात् मारनेवाला है ।।२॥ इस कारणसे सब कालमें मनुष्यको वायुके अदुष्टपनेमें प्रयत्नसे जतन करना योग्य है ॥ तस्योक्तं दोषविज्ञाने कर्म प्राकृतवैकृतम् ॥३॥ समासाद्या सतो दोषभेदीये नाम धाम च॥प्रत्येकं पञ्चधा चारो व्यापारश्चे और तिस वायुका प्राकृत और वैकृत कर्मदोषविज्ञानीय अध्यायमें प्रकाशित किया गया है ॥३॥ संक्षेपसे और विस्तारसे तिसी वायुका नाम, स्थान एकएकके प्रति प्राण आदि भेदोंकरके पांच प्रकार और गति व्यापार दोषभेदीय अध्यायमें प्रकाशित किये हैं । हवैकृतम्॥४॥तस्योच्यते विभागेन सनिदानं सलक्षणम्॥ धातुक्षयकरैर्वायुः कुप्यत्यतिनिषेवितैः॥ ५॥ चरन्स्रोतःस रिक्तेषु भृशं तान्येव पूरयन् ॥ तेभ्योऽन्यदोषपूर्णेभ्यः प्राप्य वावरणं बली ॥६॥ अब इस अध्यायमें तिस वायुका निदान और लक्षणसे संयुक्त वैकृतकर्मको कहते हैं ॥ ४ ॥ ' और धातुको क्षय करनेवाले और अत्यंत सेवित किये आहार विहार आदि करके कुपित For Private and Personal Use Only
SR No.020074
Book TitleAshtangat Rudaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVagbhatta
PublisherKhemraj Krishnadas
Publication Year1829
Total Pages1117
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size30 MB
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