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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir - निदानस्थानं भाषाटोकासमेतम् । हुए कीडे ॥ ४५ ॥ अत्यंत मधुर अन्न, गुड, दूध दही, सत्तू, नवीन चावलसे होते हैं और जव उडद पालक आदि शाक शिंबीधान्य अथवा पसीनेसे विष्ठासे उपजनेवाले कीडे होतेहैं॥४६॥ कफसे आमाशयमें उपजे कीडे बढ़के शरीरमें चारों तर्फको फैलतेहैं और कितनेक पृथुबुध्नके समान कांतिवाले हैं और कितनेक गैंडुरके समान कांतिवाले हैं ॥ ४७ ॥ और कितनेक अंकुरितहुये अन्नके अंकुरके समान आकारवाले हैं, कितनेक शरीर करके लंबे हैं, कितनेक सूक्ष्म हैं, कितनेक सफेद हैं. कितनेक तांबेके समान कांतिवाले हैं, ये सब नामसे ७ प्रकारके कहे हैं ॥ ४८ ॥ अंत्राद, उदराविष्ट, हृदयाद, महाकुह, कुरु, दर्भकुसुम, सुंगध, नमोवाले हैं ॥ ४९ ॥ ये सब हुलु'स, मुख और कानका रोग, विपाक, अरोचक मूर्छा, छर्दी, ज्वर, अफारा, कृशपना छींक, पीनसको, करते हैं ॥ ५० ॥ रक्तवाहिशिरोत्थाना रक्तजा जन्तवोऽणवः॥अपादा वृत्तताम्राश्व सौक्ष्म्यात्केचिददर्शनाः॥५१॥ केशादा लोमविध्वंसा लोमद्वीपा उदुम्बराः॥षद ते कुष्ठकैकर्माणः सहजौरसमातरः॥५२॥ पक्वाशये पुरीषोत्था जायन्तेऽधोविसर्पिणः ॥ वृद्धास्ते स्युर्भवेयुश्च ते यदाऽऽमाशयोन्मुखाः ॥ ५३॥ तदास्योगारनिःश्वासा विगन्धानुविधायिनः॥ पृथुवृत्ततनुस्थूलाःश्यावपीतसितासिताः॥५४॥ ते पञ्च नाना कृमयः ककेरुकमकेरुकाः॥सौसुरादाः सलूनाख्या लेलिहा जनयन्ति च॥५५॥ विड्भेदशूलविष्टम्भकार्यपारुष्यपांडुताः ॥ रोमहर्षाग्निसदनगुदकण्डूवि. निर्गमात् ॥ ५६ ॥ रक्तको बहनेवाली शिरासे उठनेवाले सूक्ष्म और पैरोंसे रहित गोल, तांबेके समान रंगवाले और कितनेक रूक्षपनेसे नहीं दीखनेवाले ॥ ५१ ॥ केशाद, लोमविध्वंस, लोमद्वीप, उदुंबर, सहज और समातक ये छ: कीडे कुष्ठके समान एकक्रमवाले हैं, ये सब रक्तसे उपजते है ॥ १२ ॥ पक्वाशयमें विष्ठासे उपजनेवाले और नीचेको फैलनेवाले कीडे उपजते हैं और ये बढके जब आमाशयके उन्मुख होते हैं ॥ ५३ ॥ तब कृमिरोगीके विष्टाके गंधको करनेवाले उद्गार और श्वास उपजते हैं और मोटे, गोल, सूक्ष्म, स्थूल, धूम्ररूप, पीले, सफेद, काले, कीडे ॥ ५४ ॥ पांचनामोंसे हैं ककेरुक, मरुक सौसुराद, सलूनाख्य, लेलिह, पांच हैं ॥ ५५ ॥ ये सब विड्भेद, शूल, विष्टंभ, कृशपना, कठोरपना, पांडुपना, रोमहर्ष, मंदाग्नि, गुदामें खाज, गुदाकी कांच को निकालते हैं ॥ ५६ ॥ इति वेरीनिवासिवैद्यपंडितरविदत्तशास्त्रिनाऽष्टांगहृदयसंहिताभाषाटीकायां निदानस्थाने चतुर्दशोऽध्यायः ॥ १४ ॥ For Private and Personal Use Only
SR No.020074
Book TitleAshtangat Rudaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVagbhatta
PublisherKhemraj Krishnadas
Publication Year1829
Total Pages1117
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size30 MB
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