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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ' निदानस्थानं भाषाटीकासमेतम् । (४१५) सर्वजस्तविरुग्दाहःशीघ्रपाकी घनोन्नतः॥सोऽसाध्योरक्तगुल्म स्तु स्त्रिया एव प्रजायते ॥४८॥ और कफसे स्तिमितपना, अरुचि, शिथिलपना शीतज्वर ॥४५॥ पीनस, आलस्य, हृल्लास,खांसी, त्वचा आदिका सफेदपना ये उपजते हैं, और अवगाढरूप, कठिन,भारी, सोताहुआ, स्थिर, अल्प शूलवाला, गुल्म होता है ॥४६॥ अपने अपने दोष और स्थानोंमें वास करनेवाले और वात पित्त कफसे उपजे गुल्म अपने अपने कालमें शूलको करते हैं और मिलेहुये लक्षणोंवाले दो दो दोषोंसे उपजे गुल्म तीन हैं ॥४७॥और तीव्रशूल दाहवाला और शीघ्र पकनेवाला, करडा और ऊंचा सन्निपातसे उपजा गुल्म असाध्य होता है और रक्तसे उपजा गुल्म स्त्रीके ही शरीरमें उपजताहै॥४८॥ ऋतौ वा नवसूता वा यदि वा योनिरोगिणी।सेवते वातलानस्त्री क्रुद्धस्तस्याः समीरणः॥४९॥ निरुणद्ध्यातवं योन्यां प्रति मासमवस्थितम् ॥ कुक्षिं करोति तद्गर्भलिङ्गमाविष्करोति च ॥५०॥ हृल्लासदौ«दस्तन्यदर्शनं क्षामतादिकम् ॥ क्रमेण वायुसंसर्गात्पित्तयोनितया च तत्॥५१॥शोणितं कुरुते तस्या वातपित्तोत्थगुल्मजान् ॥ रुस्तम्भदाहातीसारतृड्ज्वरादीनुपद्रवान् ॥ ५२ ॥ गर्भाशये च सुतरां शूलं दुष्टासृगाश्रये ॥ योन्याश्च स्रावदोर्गन्ध्यतोदस्कन्दनवेदनाः ॥५३॥ कपडेआनेमें अथवा नवीन सूतिका अथवा योनिरोगवाली स्त्री वातको उपजानेवाले पदार्थको सेवती है, तब तिसके कुपितहुआ वायु ॥ ४९ ॥ महीने महीनेमें निकसनेवाले आर्तवको रोकत है, और वह आर्तव गर्भके लक्षणोंके समान कुक्षिको करता है, और गर्भके लक्षणोंको प्रगट करता है ॥ ५० ॥और हलास दौहद, दूध, इन्होंका दखिना माडापन मूर्छा आदि करता है, और क्रमकरके वायुके मिलापसे पित्तके कार्यपने करके ॥ ११ ॥ वह रक्त तिस स्त्रीके वातपित्त गुल्मसे उपजे और शूल, स्तंभ दाह, अतिसार, तृषा, ज्वर, आदि उपद्रवोंको करता है ॥ ५२॥ और दुष्ट रक्तके आश्रयरूप गर्भाशयमें वह गुल्म अच्छीतरह शूलको करता है, और योनिके स्त्राव, दुर्गधपना, तोद, फुरना, पीडाको करता है ५३ ॥ न चाडैर्गर्भवद्गुल्मःस्फुरत्यपितु शूलवान् ॥ पिण्डीभूतः स .. एवास्याः कदाचित्स्पन्दते चिरात् ॥ ५४ ॥ न चास्या वर्द्धते । कुक्षिYल्म एव तु वर्द्धते॥ __गर्भकीतरह हाथ पैर आदिअंगोंकरके गुल्म नहीं फुरता है किंतु शूलसे संयुक्त रहता है और पिंडीभूतहुआ स्त्रीके गुल्म कदाचित् शीघ्रही फुरता है ॥ ५४ ॥ इस स्त्रीकी कुक्षी नहीं बढती किंतु गुल्महीं बढ़ता है । For Private and Personal Use Only
SR No.020074
Book TitleAshtangat Rudaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVagbhatta
PublisherKhemraj Krishnadas
Publication Year1829
Total Pages1117
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size30 MB
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