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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (४१६) अष्टाङ्गहृदयेस्वदोषसंश्रयो गुल्मः सर्वोभवति तेन सः॥५५॥ पाकं चिरेण भजते नैव वा विद्रधिः पुनः॥पच्यते शीघ्रमत्यर्थं दुष्टरक्ताश्रय त्वतः॥५६॥ अतः शीघ्रविदाहित्वाद्वद्रधिः सोऽभिधीयते ॥ गुल्मेऽन्तराश्रये बस्तिकुक्षिहृत्प्लीहवेदनाः॥५७॥ अग्निवर्णबल भ्रंशो वेगानां चाप्रवर्त्तनम् ॥ अतो विपर्यायो बाह्ये कोष्ठाङ्गेषु तुनातिरुक् ॥५८ ॥ वैवर्ण्यमवकाशस्य बहिरुन्नतताधिकम् ॥ स्वदोष संश्रयवाला सब प्रकारका गुल्म होता है तिस करके ॥ ५५ ॥ गुल्म चिरकालमें पकता है, अथवा नहीं पकता, और दुष्टरक्तके आश्रयपनेसे विद्रधी अत्यंत शीघ्र पक जाती है ॥५६॥ इसवास्ते शीघ्र विदाहपनेसे वह विद्रधी कहातीहै और भीतरके स्थानवाले गुल्ममें बस्ति, कुक्षि, हृदय, प्लीहामें पीडा होती है।॥ १७ ॥ और अग्नि बलवर्णका नाश होता है. और वेगोंकी अप्रवृत्ति होती है, और इन्होंसे विपरीत लक्षण बाह्यगुल्ममें होते हैं,और कोष्ट और अंगोंमें अत्यंत शूल नहीं चलता ॥ ५८ ॥ गुल्म प्रदेशके वर्णका बदल जाना, और बाहिर ऊंचेपनके अधिकता ॥ साटोपमत्युग्ररुजमाध्मानमुदरे भृशम् ॥५९॥ऊर्ध्वाधो वातरोधेन तमानाहंप्रचक्षते॥धनोऽष्ठीलोपमो ग्रन्थिरष्ठीलोलसमुन्नतः॥६० ॥ आनाहलिङ्गस्तिय॑क्तुप्रत्यष्ठीला तदाकृतिः।। और पेटमें अत्यंत गुडगुड शब्द, अत्यंत शूल तथा अफारा ये सब ॥ ५९ ॥ नचिके और ऊपरके वायुके रुकनेसे उपजैं, तिसको आनाह अर्थात् अफारा कहते हैं, और करडाहो अष्ठीलाके समान हो और ग्रंथिरूपहो, और ऊपरको अच्छीतरह ऊंचाहो तिसको अत्यष्ठीला कहते हैं।॥६॥ अफाराके समान लक्षणोंवाला और तिरछा अष्ठीलाके समान आकृतिवाला प्रत्यष्ठीला कहाता है ।। (गोलपाषाणकेसी गांठ) पक्वाशयाद्गुदोपस्थं वायुस्तीव्ररुजः प्रयान् ॥ तूनी प्रतूनी तु भवेत्स एवातो विपर्यये ॥ ६१ ॥ पक्काशयसे तीव्र पीडावाला वायु गुदा तथा लिंगमें गमन करै वह तूनी कहाता है और गुदा और लिंगसे पकाशयको गमन करनेवाला और अत्यंत पीडावाला ऐसा वायु प्रतूनी कहाता है।६१॥ उद्गारबाहुल्यपुरीषबन्धतृप्त्यक्षमत्वान्त्रविकूजनानि ॥ आटोपमाध्मानमपक्तिशक्तिमासन्नगुल्मस्य वदन्ति चिह्नम् ॥६२॥ डकारोंकी बहुलता, विष्टाका बंध, तृप्ति सहनेका अभाव, आंतोंका बोलना, पेटमें गुडगुडशब्द तथा अफारा अन्नका नहीं पकना ये सब लक्षण गुल्मके पूर्वरूपके हैं ॥ ६२ ॥ इति बेरीनिवासिवैद्यपंडितरविदत्तशास्त्रिकृताऽष्टांगहृदयसंहिताभाषाटीकायां निदानस्थाने एकादशोऽध्यायः ॥ ११ ॥ For Private and Personal Use Only
SR No.020074
Book TitleAshtangat Rudaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVagbhatta
PublisherKhemraj Krishnadas
Publication Year1829
Total Pages1117
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size30 MB
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