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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (४१४) अष्टाङ्गहृदयेकर्शनात्कफविपित्तैर्मार्गस्यावरणेन वा ॥ ३८ ॥ वायुः कृता शयः कोष्ठे रौक्ष्यात्काठिन्यमागतः ॥ स्वतन्त्रः स्वाश्रये दुष्टः परतन्त्रः पराश्रये ॥३९॥ पिण्डितत्वादमूर्तोऽपि मूर्तत्वमिव सं. श्रितः॥ गुल्म इत्युच्यते बस्तिनाभिहृत्पार्श्वसंश्रयः ॥ ४० ॥ वातान्मन्याशिरःशूलं ज्वरप्लीहान्त्रकूजनम् ॥ व्यधः सूच्येव विट्सन्नः कृच्छ्रादुच्छ्रसनं मुहुः॥४१॥ स्तम्भो गात्रे मुखे शोषः कार्य विषमवह्निता॥ रूक्षकृष्णत्वगादित्वं चलत्वादनिलस्य च॥४२॥अनिरूपितसंस्थानस्थानवृद्धिक्षयव्यथः॥पिपीलिका व्याप्त इव गुल्मः स्फुरति तुद्यते ॥ ४३ ॥ पित्तादाहोऽम्लको मूर्छा विभेदस्वेदतृड्ज्वराः ॥ हारिद्रत्वं त्वगायेषु गुल्मश्च स्पर्शनासहः॥४४॥दूयते दीप्यते सोष्मा स्वस्थानं दहतीव च॥ और धातुक्षयसे अथवा कफ, विष्ठा, पित्त इन्होंकरके मार्गके आच्छादितपनेसे ॥ ३८ ॥ कोष्ठों चास करताहुआ वायु पीछे रूखेपनेसे कठिनभावको प्राप्तहुआ और अपने स्थानमें दुष्टहुआ स्वतंत्र दूसरेके स्थानमें दुष्टहुआ परतंत्र ।। ३९ ।। और पीडितपनेसे अमूर्तरूपभी मूर्तपनेकी तरह संश्रित और बस्ति, नाभि, हृदय, पशलीमें स्थानवाला मुनिजनोने गुल्म, कहा है ॥ ४० ॥ वातसे उपजे गुल्ममें कंधा और शिरमें शूल और ज्वर तिल्लीरोग आंतोंका बोलना और सूईकी तरह वाधना, और विष्ठाकाबंध और कष्टसे बारंबार ऊंचा श्वास ।। ४१ ॥ अंगमें स्तंभ, मुखमें शोष, माडापन, अग्निका, विषमपना, त्वचा आदिका कालापन तथा रूखापन और वायुके चलनेसे ॥ ४२ ॥ नहीं निरूपित किये संस्थान, स्थान, वृद्धि, क्षय, पीडावाला गुल्म और पिपीलिका अर्थात् कीडियोंके व्याप्तकी तरह फुरताहै, और सूईका चमकाकी तरह पीडित होताहै ॥ ४३ ॥ पित्तसे उपजे गुल्ममें दाह शरीरके भीतर दाह मूर्छा विड्भेद, पसीना,तृषा, ज्वर, उपजते हैं त्वचा आदिकोंमें हलदीके समान रंगका होजाना और स्पर्शको नहीं सहनेवाला ॥ ४४ ॥ पित्तसे हुआ और ज्वलतकी तरह और गरमाईसे संयुक्त अपने स्थानको दग्धकरताकी समान गुल्म उपजता है ॥ कफास्तमित्यमरुचिः सदनं शिशिरज्वरः॥४५॥ पीनसालस्यहृल्लासकासशुक्लत्वगादितः।।गुल्मोऽवगाढःकठिनोगुरुःसुप्तः स्थिरोऽल्परुक् ॥ ४६॥ स्वदोषस्थानधामानः स्वे स्वे काले चरु कराः॥प्रायस्त्रयस्तु द्वन्द्वोत्था गुल्माः संसृष्टलक्षणाः॥४७॥ For Private and Personal Use Only
SR No.020074
Book TitleAshtangat Rudaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVagbhatta
PublisherKhemraj Krishnadas
Publication Year1829
Total Pages1117
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size30 MB
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