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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir निदानस्थानं भाषाटीकासमेतम् । (४०१) विप्लुतम् ॥ करोति तत्र रुग्दाहस्यन्दनोद्वेष्टनानि च ॥ २१॥ बिन्दुशश्च प्रवर्तत मूत्रं बस्तौ तु पीडिते ॥धारया द्विविधोऽ प्येष वातबस्तिरिति स्मृतः॥२२॥ दुस्तरो दुस्तरतरो द्वितीयः प्रबलानिलः॥ मूत्रको धारणकरनेवाले मनुष्यके वायु बस्तिस्थानके द्वारको एक मूत्रका बंध, शूल, खाजको करता है और कभी अपने स्थानसे ॥ २० ॥ तिस बस्तिको स्खलित कर ऊपरको मुखवाली और गर्भके समान कांतिवाली अपने प्रमाणसे बढीहुई और चंचल बस्तिको करदेता है तहां शूल, दाह, फडकना, उद्वेष्टन उपजते हैं ॥ २१ ॥ बूंदबूंदकरके मूत्र निकसता है और बस्तिस्थानको पीडन करनेमें धारा करके मूत्र उतरता है दो प्रकारवाला यह वातबस्तिरोग कहा है ॥ २२ ॥ तिन्होंमें पहिला वातवस्ति दुस्तरहै और दूसरा वातबस्ति प्रबलवायुवाला होनेसे अत्यंत दुस्तरहै ॥ शकृन्मार्गस्य बस्तेश्च वायुरन्तरमाश्रितः॥ २३ ॥ अष्ठीलाभं घनं ग्रन्थि करोत्यचलमुन्नतम् ॥ वाताष्ठीलेति सामानवि मूत्रानिलसङ्गकृत् ॥ २४ ॥ विगुणः कुण्डलीभूतो बस्ती तीव्रव्यथोऽनिलः॥ आविश्य मूत्रंभ्रमति सस्तम्भोद्वेष्टगौरवः ॥२५॥मूत्रमल्पाल्पमथवा विमुञ्चति शकृत्सृजन् ॥ वात कुण्डलिकेत्येषा मूत्रन्तु विधृतं चिरम् ॥२६॥न निरेति विबद्धं वा मूत्रातीतं तदल्परुक् ॥ विधारणात्प्रतिहतं वातोदा वर्तितं यदा ॥ २७ ॥ नाभेरधस्तादुदरं मूत्रमापूरयेत्तदा ॥ कुर्यात्तीव्ररुगाध्मानमपक्तिमलसंग्रहम् ॥ २८ ॥ तन्मूत्रजठरं छिद्रवैगुण्येनानिलेन वा ॥ आक्षितमल्पं मूत्रन्तु बस्तौ नाले. थवा मणौ ॥२९॥ स्थित्वा स्रवेच्छनैः पश्चात्सरुजं वाऽथवाऽ रुजम् ॥ मूत्रोस्सङ्गः स विच्छिन्नतच्छेषगुरुशेफसः ॥३०॥ और गुदाके तथा बस्तिके मध्यमें स्थितहुआ वायु ॥ २३॥ अष्ठीलाके समान कांतिवाला अचल तथा ऊंची तथा करडी ग्रंथिको करता है तिसको वाताष्ठीला कहते हैं । यह अफारा और विष्ठा, मूत्र, अधोवातको बंध करता है ॥ २४ ॥ कुपितहुआ और कुंडलके आकार गमन करनेवाला तीव्रपीडाको देनेवाला वायु मूत्रमें प्रवेश कर बस्तिमें भ्रमता है और वही वायु स्तंभ, उद्वेष्टन, भारीपनमें वर्तता है ॥ २५ ॥ तब विष्ठाको निकासताहुआ थोडे थोड़े मूत्रको उतारता है। इसको वातकुंडलिका कहते हैं और चिरकालतक धारण किया ॥ २६ ॥ अथवा पवनके वशसे For Private and Personal Use Only
SR No.020074
Book TitleAshtangat Rudaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVagbhatta
PublisherKhemraj Krishnadas
Publication Year1829
Total Pages1117
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size30 MB
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